शिव शंकर भोलेनाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,
शिवशंकर भोलेनाथ ओ नाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे ॥
तेरा नीलकंठ पे धाम बना,
जहाँ सबका बिगड़ा काम बना,
तेरा नीलकंठ पे धाम बना,
जहाँ सबका बिगड़ा काम बना,
सारे जग की रखले बात,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,
शिवशंकर भोलेनाथ ओ नाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे ॥
तेरे जैसा औघड़ दानी ना,
तेरे जैसा कोई वरदानी ना,
तेरे जैसा औघड़ दानी ना,
तेरे जैसा कोई वरदानी ना,
मेरे भोले पिता मात,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,
शिवशंकर भोलेनाथ ओ नाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे ॥
तेरा सबसे रूप निराला है,
तू तो जोगी बड़ा मतवाला है,
तेरा सबसे रूप निराला है,
तू तो जोगी बड़ा मतवाला है,
तेरा पूजन हो दिन रात,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,
शिवशंकर भोलेनाथ ओ नाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे ॥
शिव शंकर भोलेनाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,
शिवशंकर भोलेनाथ ओ नाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे ॥
शारदीय नवरात्र के बाद 10वें दिन दशहरे का त्योहार देश भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।
हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयदशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाता है जो कि अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है।
जब बरसों के इंतजार के बाद श्रीराम शबरी की कुटिया में पहुंचे, तो उनके बीच एक अनोखा संवाद हुआ।
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है, जो भगवान राम और उनकी भक्त शबरी के बीच के पवित्र बंधन का प्रतीक है।