वृन्दावन में बचपन बिताने के बाद जवान होकर श्रीकृष्ण मथुरा आए। यहां उन्हें अपने अवतार लेने के मुख्य उद्देश्य को पूरा करना था। लेकिन उन्होंने इससे पहले और भी कई लीलाएं की और कंस के कई साथियों का उद्धार किया।
भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के दसवें एपिसोड में आज हम आपको उन लीलाओं के बारे में बताएंगे जो कान्हा से कंस तक पहुंचने से पहले मथुरा में कीं…
कंस के महल में पहुंचते ही भगवान ने वहां रखा शिव धनुष बाएं हाथ से उठाया और पलक झपकते ही धनुष के तीन टुकड़े कर दिए। इसके बाद कुबलियापीड़ नाम का विशाल हाथी श्रीकृष्ण की ओर दौड़कर आया तो भगवान ने उसे अपनी मुठ्ठी के प्रहार से मार गिराया।
यह समाचार कंस तक पहुंचाने वाले दूत ने कंस से कहा- महाराज एक ग्वाले ने शिव धनुष तोड़ दिया है। वहीं धनुष जो शिवजी ने आपको दिया था। कंस को शिव की वाणी याद आती है कि जो इस धनुष तोड़ेगा वही तुम्हारा वध करेगा। समाचार सुनकर कंस भय से कांपने लगा। फिर कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अपने सबसे बलशाली पहलवान भेजें। इनके नाम मुष्टिक और चाणूर थे। एक तरफ सुकुमार कोमल से कृष्ण-बलराम थे तो दूसरी तरफ बड़े-बड़े मल्ल युद्ध के पहलवान।
बड़ी संख्या में मथुरावासी यह युद्ध देखने आए। कंस भी अपने ऊंचे सिंहासन पर बैठा था। कृष्ण-बलराम दोनों भाईयों ने रंगभूमि में प्रवेश किया। तभी चाणूर और मुष्टिक ने उन्हें चुनौती देते हुए कहा- ग्वाले यह गोकुल नहीं है। यहां नाटक नहीं युद्ध होगा। कन्हैया बोले- तो देर किस बात की आ जाओ। यह सुनकर सब लोगों को लगा आज ये दोनों बालक मारे जाएंगे। लेकिन भगवान से कौन जीत पाया है।
कृष्ण-बलराम ने भीषण युद्ध में दोनों पहलवानों को मार गिराया और कंस की आंखों में आंखें डालकर कहा- मामा तुमने जिन-जिन को भेजा सब परलोक सिधार गए। अब तुम्हारी बारी है। इस तरह श्रीकृष्ण ने कंस के अंत से पहले उसके सभी साथियों को एक-एक करके ठिकाने लगाया।
हिंदू धर्म के अनुसार सप्ताह के सात दिन अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित है। इन मान्यताओं के अनुसार हम प्रत्येक दिन किसी-न-किसी देवी-देवता की पूजा आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं।
सुबह ही क्यों की जाती है भगवान की पूजा, जानिए पूजा के पांच समय
सनातन परंपरा के अनुसार संसार में अब तक चार युग हुए हैं। इन चार युगों को सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलि युग कहा गया है। संसार का आरंभ सतयुग से हुआ। त्रेता युग में विभिन्न देवताओं ने विभिन्न अवतारों के साथ धर्म की रक्षा की। इसमें प्रमुख रूप से रामावतार में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना की और पापियों का नाश किया।
त्रेता युग में भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार लिया। रामावतार श्री हरि विष्णु के परमावतारों में से एक है। श्री राम अवतार में भगवान ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में सांसारिक लीलाएं की और रावण का वध कर संसार को पापों से मुक्ति दिलाई और धर्म की स्थापना की।