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यमुनोत्री धाम की कथा और महिमा

यमुनोत्री धाम की कथा और महिमा

Yamunotri Mandir Katha: यमुनोत्री धाम में स्नान करने से अकाल मृत्यु रुक जाती है, जानें इस मंदिर की पौराणिक कथा और महत्व


भारत में चार धाम यात्रा का विशेष महत्व है और इसमें उत्तराखंड के चार पवित्र धाम – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ शामिल हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु इन धामों की यात्रा करते हैं। इन चारों में यमुनोत्री यात्रा की शुरुआत सबसे पहले होती है। साल 2025 में यमुनोत्री धाम की यात्रा 30 अप्रैल से शुरू हो रही है। यह धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से लगभग 3,293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

यमुनोत्री का धार्मिक महत्व

यमुनोत्री धाम मां यमुना को समर्पित है, जिन्हें सूर्यदेव की पुत्री और यमराज की बहन माना जाता है। मान्यता है कि यमराज ने यमुना जी को वचन दिया था कि जो भी भक्त यमुनोत्री में स्नान करेगा, उसे मृत्यु के समय कष्ट नहीं होगा और वह शांति से यमलोक पहुंचेगा। यही कारण है कि यहां स्नान को पवित्र और मोक्षदायक माना जाता है।

यमुनोत्री धाम की पौराणिक कथा

कहा जाता है कि प्राचीन समय में असित मुनि नाम के एक तपस्वी ऋषि यहां तपस्या करते थे। वे रोज गंगोत्री और यमुनोत्री दोनों स्थानों पर स्नान करते थे। बुढ़ापे में जब वे चलने में असमर्थ हो गए, तो मां यमुना स्वयं एक जलधारा के रूप में उनके पास प्रकट हुईं। इससे यह स्थान और भी पवित्र माना जाने लगा।

मंदिर की विशेषताएं

यमुनोत्री मंदिर का निर्माण 19वीं सदी में गढ़वाल के राजा प्रताप शाह ने करवाया था। यह मंदिर काले पत्थरों से बना है और इसमें यमुना जी की एक सुंदर मूर्ति स्थापित है, जो काले संगमरमर की बनी हुई है। मंदिर के पास सूरजकुंड नामक गर्म जलकुंड है, जहां श्रद्धालु चावल और आलू उबालकर देवी को चढ़ाते हैं और फिर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

यमुनोत्री का प्राकृतिक सौंदर्य भी उतना ही मनमोहक है जितना उसका धार्मिक महत्व। यहां से पास ही कालिंदी पर्वत है, जहां से यमुना नदी निकलती है। असली उद्गम स्थल यमुनोत्री ग्लेशियर में है, जो मंदिर से करीब 1 किलोमीटर ऊपर है। चढ़ाई कठिन होने के कारण अधिकतर श्रद्धालु मंदिर में ही पूजा करते हैं। यात्रा की शुरुआत जानकी चट्टी नामक स्थान से होती है, जहां से 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके भक्त मंदिर तक पहुंचते हैं। अक्षय तृतीया के दिन यहां विशेष भीड़ होती है।

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