भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को गोगा नवमी मनाई जाती है। इस त्योहार का हिंदू धर्म में बहुत ही खास महत्व है।इस दिन वाल्मीकि समाज के लोग गोगादेव की पूजा करते हैं। इस साल आज यानी 27 अगस्त को गोगा नवमी मनाई जा रही है।गोगा नवमी के पर्व पर हर साल राजस्थान के गोगामेढ़ी में मेला लगता है। यहां पर हजारों की संख्या में गोगा स्वामी के भक्त गोगादेव की पूजा करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि गोगादेव की सच्चे मन से पूजा करने से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है। गोगादेव राजस्थान के मुख्य देवता हैं, इनकी पूजा उत्तर प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों में भी होती है।
इस साल भाद्रपद मास की नवमी तिथि की शुरुआत 27 अगस्त को सुबह 2 बजकर 20 मिनट पर हुई है। वहीं इस तिथि का समापन 28 अगस्त को रात 1 बजकर 33 मिनट पर होगा। ऐसे में गोगा नवमी 27 अगस्त को मनाई जा रही है।
गोगा नवमी का पर्व वाल्मिकी समाज के द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। इनकी पूजा खास तौर पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य में की जाती है। गोगा नवमी का व्रत रखने से महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही नाग दोष से भी छुटकारा मिलता है। इस अवसर पर कई जगहों पर खेजड़ी, जाटी नाम से जाने वाले और गोगा के पौधे की पूजा की जाती है। इस पौधे को विधिपूर्वक जल में प्रवाहित किया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गोगा देव जी का जन्म गुरु गोरखनाथ के वरदान से राजस्थान के ददरेवा/चुरु में चौहान वंश के राजपूत शासक जेवरसिंह की पत्नी बाछल के गर्भ से भाद्रपद सुदी नवमी को हुआ था। गोगा देव जी का ये पर्व भाद्रपद पंचमी से गोगा नवमी तक चलता है। उन्हें राजस्थान के लोक देवता के नाम से एक पीर के रुप में भी जाना जाता है। उन्हें गुरु गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में स्थान प्राप्त है। वहीं गोगा नवमी के संबंध में एक मान्यता यह भी है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर में रखने से सर्पभय नहीं रहता है। ऐसा माना जाता है कि वीर गोगा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
प्राचीन कथा के अनुसार, गोगा जी की मां बाछल देवी के एक भी संतान नहीं थी। संतान न होने के कारण वो बेहद दुखी रहती थीं। एक दिन गोगामड़ी में गुरु गोरखनाथ अपनी तपस्या करने के लिए आए। तब बाछल देवी गुरु गोरखनाथ जी के पास जाती हैं और उन्हें अपने संतान न होने की समस्या के बारे में बताती हैं। उनकी समस्या सुनकर गुरु गोरखनाथ उन्हें एक फल खाने के लिए देते हैं और पुत्रवती होने का आशीर्वाद देते हुए कहतें है कि तेरा पुत्र बहुत वीर होगा। वो सांपों को वश में करना सिद्ध और शिरोमणी होगा। उस फल को खाने के बाद बाछल को नौ महीने के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति होती हैं। उन्होंने उसका नाम गुग्गा रखा। जिस दिन गुग्गा का जन्म हुआ वो भाद्रपद मास की नवमी तिथि ही थी। इसके बाद गुग्गा को गोगा नाम से जाना जानें लगा।
गोगा नवमी पर भक्त 'गुगाजी' की मूर्ति की पूजा करते हैं। वे नीले रंग के घोड़े पर सवार दिखाई देते हैं और पीले और नीले रंग के झंडे भी पकड़े रहते हैं। कुछ क्षेत्रों में, भगवान गोगा की पूजा का अनुष्ठान श्रावण पूर्णिमा से शुरु होता है और नवमी तक नौ दिनों तक चलता है। इसके कारण इसे गोगा नवमी के नाम से भी जाना जाता है। पूजा समारोह पूरा होने के बाद भक्तों के बीच प्रसाद के रुप में चावल और चपाती वितरित की जाती है।
13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है। वहीं, मकर संक्रांति के पवित्र स्नान पर करोड़ो साधु-संतों और श्रद्धालुओं ने यहां आस्था की डुबकी भी लगाई है। कुंभ नगरी में बड़ी संख्या में देशभर से साधु-संत भी पहुंचे हैं।
महाकुंभ 2025 में, गंगापुरी महाराज अपनी हाइट को लेकर सुर्ख़ियों में हैं और आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। उनकी हाइट महज 3 फिट है। इतनी लंबाई महज पांच-छह साल के बच्चे की होती है।
प्रयागराज में 13 जनवरी से जोर शोर से महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है। यहां, साधु-संतों के पहुंचने का सिलसिला अभी भी जारी है। इसी क्रम में महाकुंभ में बवंडर बाबा भी पहुंचे हैं।
महाकुंभ में इस वक्त कल्पवासी, कल्पवास कर रहे हैं। कुंभ में हजारों-लाखों लोग कल्पवास व्रत रखते हैं। कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस पर्व के महत्व को समझने के लिए सबसे पहले समझें कि कल्पवास का अर्थ क्या होता है।