गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा की दिव्यता और गंभीरता को दर्शाने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उनके ज्ञान को नमन करते हैं। परंतु बहुत से लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि यदि उनके जीवन में कोई गुरु नहीं हैं, तो वे गुरु पूर्णिमा पर किसकी पूजा करें।
इस प्रश्न का उत्तर भी हमारी महान परंपरा और शास्त्रों में निहित है। यदि किसी के पास कोई जीवित गुरु नहीं है या किसी विशेष गुरु से दीक्षा नहीं मिली है, तो वे महर्षि वेदव्यास को ही गुरु मानकर श्रद्धा पूर्वक पूजन कर सकते हैं। महर्षि वेदव्यास को ‘आदि गुरु’ कहा गया है, जिन्होंने मानव जाति को वेदों का ज्ञान दिया, महाभारत जैसे महाग्रंथ की रचना की और अठारह पुराणों का संकलन किया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से व्यक्ति को गुरु पूजन का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि यही वह तिथि मानी जाती है जब महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने वेदों को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद चार भागों में विभाजित किया और इस प्रकार ज्ञान को व्यवस्थित किया ताकि वह सभी के लिए सुलभ हो सके। वेदव्यास की यह सेवा उन्हें समस्त मानवता का गुरु बना देती है।
शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों का बहुत महत्व बताया गया है। इन सभी पावन ज्योतिर्लिंगों का अपना धार्मिक महत्व और मान्यताएं है।
विश्व प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से तीन पावन ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में अलग-अलग स्थानों पर विराजित है। लेकिन यहां एक ज्योतिर्लिंग ऐसा है जिसके बारे में तीर्थयात्रियों का मानना है की यहां की यात्रा करने से सभी 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजा करने का लाभ मिलता है।
विश्व प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों का शास्त्रों में बहुत अधिक महत्व बताया गया है।
भारत की चारों दिशाओं यानि पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण में चार धाम बसे हुए हैं।