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मकर संक्रांति पुण्य काल

मकर संक्रांति पुण्य काल

Makar संक्रांति 2025: मकर संक्रांति पर 16 घंटे का पुण्य काल, जानें इस दिन का महत्व


2025 में, मकर संक्रांति विशिष्ट योग में 14 जनवरी को मनाई जाएगी। 14 जनवरी को सुबह 8 बजकर 41 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा। ऐसे में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक स्नान-ध्यान और दान का शुभ मुहूर्त रहेगा। इसमें सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर शाम में 05 बजकर 46 मिनट तक का समय पुण्य काल रहेगा। जबकि, इसी दौरान महापुण्य काल का भी निर्माण होगा। इस समय दान का सर्वोत्तम फल मिलेगा। तो आइए, इस आर्टिकल में संक्रांति के पुण्य काल और इसके महत्व को और विस्तार से जानते हैं। 


कब से कब तक रहेगा पुण्य काल? 


पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी 2025 को ही मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य सुबह 8 बजकर 41 मिनट मकर राशि में प्रवेश करेंगे।  मकर संक्रांति पुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा और महापुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। 


बता दें कि सभी 12 संक्रांतियों में मकर संक्रांति के पुण्य काल की अवधि 16 घंटे की होती है। अर्थात संक्रांति लगने के समय के पूर्व 16 घंटे से पुण्य काल प्रारंभ हो जाता है। इसका प्रभाव संक्रांति लगने के 16 घंटे बाद तक रहता है। जान लें कि पूजा का समय सुबह 7 बजकर 2 मिनट के बाद आरंभ होगा। स्नान-दान इत्यादि के लिए यह समय शुभ फलदायी होगा। 


इस दिन दान करने की है परंपरा 


मकर संक्रांति भगवान सूर्य को समर्पित पर्व है। इस अवसर पर भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के स्वामित्व राशि मकर के घर में पहुंचकर एक माह तक विश्राम करते हैं। इसलिए, इसे पुण्यप्रद मास भी कहा जाता है। मकर राशि में सूर्य देव के प्रवेश के बाद नदियों में स्नान- ध्यान करने की परंपरा है। स्नान के बाद सूर्य भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। और उन्हें अर्घ्य देकर गरीबों को ऊनी वस्त्र, कंबल, तिल -गुड़ खिचड़ी इत्यादि का दान किया जाता है। 


मकर संक्रांति मनाने की पौराणिक कथा 


धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि, शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। इस कारण यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है। वहीं, एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के कारण भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस विजय को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। 


जानिए मकर संक्रांति का महत्व


मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है। उत्तरायण का अर्थ है सूर्य की यात्रा दक्षिण से उत्तर की ओर शुरू होना। इसलिए, इस दिन भगवान सूर्य और शनि की विशेष आराधना करनी चाहिए। श्रद्धालु मकर संक्रांति के दिन पूरे दिन दान-पुण्य कर सकते हैं। इस दौरान वे तिल- गुड़, मूंगफली इत्यादि से बने खाद्य पदार्थों के अलावा विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का दान-पुण्य कर सकते हैं। जान लें कि मकर संक्रांति के दिन हरिद्वार, काशी, कुरुक्षेत्र, अयोध्या जैसे स्थानों पर स्थित पवित्र नदियों में स्नान और दान का विशेष महत्व है। 


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तेरे दर पे आ तो गया हूँ,
राह दिखा दे मुझको काबिल कर दे,

जब जब मन मेरा घबराए(Jab Jab Man Mera Ghabraye)

जब मन मेरा घबराए,
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जय माता दी बोल,
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जब प्राण तन से निकले

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