सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान शिव और शनिदेव के आराधना के लिए समर्पित होता है। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आने वाले इस व्रत में शिवलिंग की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। जब यह व्रत शनिवार के दिन पड़ता है, तो इसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। यह व्रत धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। व्रत के दौरान कुछ उपायों को करने से अदृश्य भय पर विजय सहित कई लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। तो आइए इस आलेख में इन उपायों को विस्तार से जानते हैं।
हिंदू धर्म में कर्म और उसके फल को अत्यधिक महत्व दिया गया है। इस व्रत के माध्यम से भक्त अपने पूर्व जन्मों के पापों का प्रायश्चित कर सकते हैं और अपने वर्तमान जीवन में सुख-समृद्धि भी प्राप्त कर सकते हैं। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से फलदायी है जो अपनी इच्छाओं की पूर्ति चाहते हैं। माना जाता है कि इस दिन शिव और शनि की आराधना से हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है। ज्योतिष में शनि को जीवन में सुख-दुख का कारक माना गया है। इस व्रत के द्वारा शनि के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।
त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव के लिए विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। शिव और शनि दोनों की पूजा से व्यक्ति के जीवन में संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। चूंकि, शनिवार शनि देव का दिन माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली हर बाधा दूर हो सकती है।
गंगा और यमुना की तरह नर्मदा नदी को भी हिंदू धर्म में काफी पवित्र माना गया है। नर्मदा नदी को मां दुर्गा से जोड़कर देखा जाता है, इसलिए मां नर्मदा को हिंदू धर्म की सात पवित्र नदियों में भी शामिल किया गया।
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में सिंधु के नाम से जानी जाने वाली सिंधु नदी हिंदू पौराणिक कथाओं और इतिहास का केंद्र रही है।
सप्त नदियों में कावेरी नदी का भी विशेष स्थान है। तमिलनाडु और कर्नाटक में ये अपने जीवनदायनी गुणों की वजह से प्रसिद्ध है। कावेरी नदी को भगवान दत्तात्रेय से जोड़कर देखा जाता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं की 'पवित्र सात नदियों' में गोदावरी नदी का उल्लेख मिलता है। गंगा और यमुना के अलावा गोदावरी का भी भारत में काफी महत्त्व है। यह नदी उत्तर और दक्षिण भारत की संस्कृतियों का संगम है।