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खूनी नागा कौन होते हैं

खूनी नागा कौन होते हैं

महाकाल की पूजा करने वालों को कहा जाता है खूनी नागा, जानें कैसे पड़ा नाम 

 

जो लोग अखाड़ों के बारे में नहीं जानते, उन्हें यह जानकर हैरानी हो सकती है कि नागा साधु कई प्रकार के होते हैं। खूनी नागा, खिचड़िया नागा, बर्फानी नागा और नागा। नागाओं को लेकर तमाम तरह की कहानियां भी प्रचलित हैं, जो श्रद्धालुओं को काफ़ी हैरान करते हैं। खूनी नागा शब्द आपने कई बार सुना होगा। हालांकि, खूनी नागा आखिर कौन होते हैं और इनके नाम के पीछे का क्या रहस्य है, इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं होगी। तो आइए इस आलेख में खूनी नागा साधुओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।



कौन होते हैं खूनी नागा? 


उज्जैन के कुंभ में जो नागा बनते हैं, उन्हें ‘खूनी’ नागा कहा जाता है। माना जाता है कि खूनी नागा सैनिक की तरह होते हैं। ये धर्म की रक्षा के लिए खून भी बहा सकते हैं। बता दें कि खूनी नागा अस्त्र-शस्त्र धारण किए रहते हैं। उज्जैन में महाकाल की पूजा होती है और गर्मी के मौसम में यहां कुंभ का आयोजन होता है। मान्यता है कि इसका प्रभाव उज्जैन में नागा बनने वाले संन्यासियों के स्वभाव पर भी पड़ता है। इसी वजह से उज्जैन में नागा बनने वाले गुस्सैल प्रवृत्ति के होते हैं। 



कैसे बनते हैं खूनी नागा? 


दरअसल, नागा साधु बनने की प्रक्रिया किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होती है। किसी भी अखाड़े में प्रवेश के बाद पहले 3 साल उन्हें महंतों की सेवा में बिताने पड़ते हैं। ताकि वो अखाड़ों के नियमों को समझ सकें। इसके साथ ही उनके ब्रह्मचर्य की भी परीक्षा ली जाती है। इसमें सफल होने के बाद उनका मुंडन कराया जाता है और फिर क्षिप्रा नदी में 108 बार डुबकी लगानी पड़ती है। 



इन पांच चीजों को धारण करते हैं नागा


नागा साधुओं को अखाड़ों में भस्म, भगवा और रुद्राक्ष जैसी 5 चीजें धारण करने को दी जाती हैं। इसके अलावा उन्हें संन्यासी के तौर पर अपना सारा जीवन व्यतीत करने की भी शपथ दिलाई जाती है। ये सारी प्रक्रियाएं पूरी होने के बाद नागा साधु अखाड़ों को छोड़कर पहाड़ों पर या जंगल में चले जाते हैं। और वहीं पर रहकर अपनी साधना करते हैं। 



स्थान के हिसाब से मिलते हैं नाम


अखाड़ों के बीच मान्यता है कि इलाहाबाद के कुंभ में नागा बनने वाले संन्यासियों को राजयोग मिलता है।  इसीलिए, उन्हें राजराजेश्वर नागा कहते हैं। वहीं, हरिद्वार के कुंभ में नागा बनने वाले संन्यासियों को ‘बर्फानी’ नागा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि हरिद्वार चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है और कुंभ के अन्य आयोजन स्थलों के मुकाबले हरिद्वार में ठंड ज्यादा पड़ती है। इसलिए वहां नागा बनने वाले संन्यासी शांत प्रवृत्ति के होते हैं। इसलिए उन्हें बर्फानी नागा कहा जाता है। 



कठिन होती है खूनी नागा बनने की प्रक्रिया 


खूनी नागा साधु बनने की प्रक्रिया में उस व्यक्ति को रात भर ओम नम: शिवाय का जाप करना होता है। इसके बाद अखाड़े के महामंडलेश्वर विजया हवन करवाते हैं। फिर सभी को क्षिप्रा नदी में 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं। उसके बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे उनसे दंडी त्याग करवाया जाता है। फिर जाकर वह नागा साधु बनते हैं। 


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