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कल्पवास के नियम क्या है

कल्पवास के नियम क्या है

MahaKumbh 2025: सुबह 4 बजे उठते हैं कल्पवासी, एक ही टाइम मिलता है खाना, जानें कल्पवास के कड़े नियम 


हर साल माघ माह में कल्पवास के लिए  प्रयागराज में  लोग पहुंचते हैं। लेकिन इस साल प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ  माघ माह में होने जा रहा हैं।  ऐसे में इस  बार यह संख्या दोगुनी होने वाली है। बता दें कि कल्पवास की परंपरा सदियों से चल रही है। मानसिक और आध्यात्मिक शांति के इस मार्ग का पालन बड़े बड़े साधु संतों से लेकर महान राजाओं ने किया है।  इसे मोक्ष की प्राप्ती का मार्ग भी माना जाता है। जिसके कारण इसका पालन करते समय  कई नियमों  को ध्यान में रखना होता है। चलिए आपको विस्तार से कल्पवास के नियमों के बारे में बताते हैं।


कल्पवास का महत्व 


हिंदू धर्म में कल्पवास की परंपरा मोक्ष और शांति का साधन है। यह माघ महीने में गंगा, यमुना , सरस्वती के संगम पर संयमित जीवन जीने की परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए भी इसका खास महत्व है। माना जाता है कि जो व्यक्ति कल्पवास का प्रक्रिया का पालन करता है, उसे सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।


कल्पवास के नियम 


कल्पवास के दौरान कई नियमों का पालन करना होता है।


  1. निवास और दिनचर्या- कल्पवास के दौरान श्रद्धालुओं संगम या पवित्र नदी के किनारे तंबू में रहना होता है। वहां वे साधना, ध्यान, और पूजा करते हैं।
  2. संयमित भोजन- कल्पवास के दौरान  कल्पवासियों  को केवल सादा और शुद्ध शाकाहारी भोजन खाने की इजाजत होती है।  उन्हें तामसिक भोजन खाने की मनाही होती है।
  3. पवित्र स्नान- हर दिन सूर्योदय से पहले  ब्रह्म मुहूर्त में  पवित्र नदी में स्नान करना जरूरी होता है। इसे आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा कल्पवास में संगम तट पर  दिन में तीन बार स्नान करने की प्रक्रिया भी है।
  4. भक्ति और ध्यान- कल्पवास के दौरान  श्रद्धालुओं को अपना ज्यादातर समय   सत्संग , भजन, कीर्तन में लगाना चाहिए। इससे ध्यान लगाने में आसानी होती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  5. दान और सेवा- दान सबसे बड़ा पुण्य का काम माना गया है। इसी कारण से कल्पवास के दौरान गरीबों को दान दें , भंडारों का आयोजन करें। आप चाहे तो वस्त्रों का दान भी कर सकते हैं। इसे बहुत पुण्य मिलता है।


कल्पवास की विधि 


  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे और संग किनारे स्नान करें। स्नान के बाद संगम की रेती से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर पूजन करें। इसके बाद  सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दें।
  • कल्पवास के दौरान तामसिक भोजन और मांस-मदिरा का सेवन बिलकुल भी न करें। साथ ही अपना एक समय का भोजन  खुद पकाएं।
  • किसी भी तरह के बुरे विचार मन में न लाने के लिए कल्पवास के दौरान जमीन पर ही  सोए। इसके साथ ही खूब सारा दान करें।
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