हर साल माघ माह में कल्पवास के लिए प्रयागराज में लोग पहुंचते हैं। लेकिन इस साल प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ माघ माह में होने जा रहा हैं। ऐसे में इस बार यह संख्या दोगुनी होने वाली है। बता दें कि कल्पवास की परंपरा सदियों से चल रही है। मानसिक और आध्यात्मिक शांति के इस मार्ग का पालन बड़े बड़े साधु संतों से लेकर महान राजाओं ने किया है। इसे मोक्ष की प्राप्ती का मार्ग भी माना जाता है। जिसके कारण इसका पालन करते समय कई नियमों को ध्यान में रखना होता है। चलिए आपको विस्तार से कल्पवास के नियमों के बारे में बताते हैं।
हिंदू धर्म में कल्पवास की परंपरा मोक्ष और शांति का साधन है। यह माघ महीने में गंगा, यमुना , सरस्वती के संगम पर संयमित जीवन जीने की परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए भी इसका खास महत्व है। माना जाता है कि जो व्यक्ति कल्पवास का प्रक्रिया का पालन करता है, उसे सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
कल्पवास के दौरान कई नियमों का पालन करना होता है।
साल के आखिरी माह यानी दिसंबर की शुरुआत हो चुकी है, और यह माह कई पवित्र व्रत-त्योहारों से भरा है। इनमें विवाह पंचमी का विशेष महत्व है, जो भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह की स्मृति में मनाई जाती है। हिंदू धर्म में राम-सीता की जोड़ी को आदर्श दांपत्य जीवन का प्रतीक माना गया है।
सनातन धर्म में वायु देवता बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वेदों में इनका कई बार वर्णन मिलता है और इन्हें भीम का पिता और हनुमान के आध्यात्मिक पिता माना जाता है। वायु पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) में से एक है और इसे जीवन का आधार माना जाता है।
हिंदू धर्म में भानु सप्तमी का व्रत विशेष रूप से सूर्यदेव को समर्पित है। यह दिन सूर्यदेव की पूजा-अर्चना करने के लिए विशेष माना जाता है।
हर माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर यदि रविवार होता है, तो उस दिन भानु सप्तमी मनाई जाती है। मार्गशीर्ष मास में ये विशेष संयोग 08 दिसंबर, रविवार को बन रहा है।