राजा राम आइये,
प्रभु राम आइये,
मेरे भोजन का,
भोग लगाइये ॥
आचमनी अर्घा आरती,
यही यहाँ मेहमानी,
रुखी रोटी पाओ प्रेम से,
पियो नदी का पानी,
राजा राम आइयें,
प्रभु राम आइये,
मेरे भोजन का,
भोग लगाइये ॥
भूल करोगे यदि तज दोगे,
भोजन रुखे सुखे,
एकादशी आज मन्दिर में,
बैठे रहोगे भूखे,
राजा राम आइयें,
प्रभु राम आइये,
मेरे भोजन का,
भोग लगाइये ॥
राजा राम आइये,
प्रभु राम आइये,
मेरे भोजन का,
भोग लगाइये ॥
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि।
भवाय चन्द्रचूडाय निर्गुणाय गुणात्मने ।
ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।
लाङ्गूलमृष्टवियदम्बुधिमध्यमार्ग , मुत्प्लुत्ययान्तममरेन्द्रमुदो निदानम्।