सजा है प्यारा दरबार बाबा का,
भक्तों ने मिलकर के किया है,
श्रृंगार बाबा का,
सजा हैं प्यारा दरबार बाबा का,
लगे है न्यारा दरबार बाबा का ॥
भक्तों ने मिलकर के,
बाबा को है आज बुलाया,
गेंदा चम्पा और चमेली,
फूलों से है सजाया,
रंग बिरंगे फूलों का है हार बाबा का,
सजा हैं प्यारा दरबार बाबा का,
लगे है न्यारा दरबार बाबा का ॥
मुख मंडल की आभा ऐसी,
सूरज फीका लागे,
करके दर्शन बाबा का मेरी,
सोई किस्मत जागे,
आओ मिलकर के करलो,
सब दीदार बाबा का,
सजा हैं प्यारा दरबार बाबा का,
लगे है न्यारा दरबार बाबा का ॥
बनड़े जैसा सजा हुआ है,
माँ अंजनी का लाला,
देख देख कर मन वारी हो,
ऐसा रूप निराला,
‘नरसी’ के संग गा लो,
मंगलाचार बाबा का,
सजा हैं प्यारा दरबार बाबा का,
लगे है न्यारा दरबार बाबा का ॥
सजा है प्यारा दरबार बाबा का,
भक्तों ने मिलकर के किया है,
श्रृंगार बाबा का,
सजा हैं प्यारा दरबार बाबा का,
लगे है न्यारा दरबार बाबा का ॥
प्रत्येक महीने में एकादशी दो बार आती है—एक बार कृष्ण पक्ष में और दूसरी बार शुक्ल पक्ष में। कृष्ण पक्ष की एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है, जबकि शुक्ल पक्ष की एकादशी अमावस्या के बाद आती है।
माघ मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इसे तिल द्वादशी भी कहते हैं। भीष्म द्वादशी को माघ शुक्ल द्वादशी नाम से भी जाना जाता है।
पुराणों के अनुसार महाभारत युद्ध में अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लिटा दिया था। उस समय सूर्य दक्षिणायन था। तब भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते हुए माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन प्राण त्याग दिए थे।
हिंदू धर्म में भीष्म द्वादशी का काफी महत्व है। यह माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल रविवार, 9 फरवरी 2025 को भीष्म द्वादशी का व्रत रखा जाएगा।