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श्रीकृष्ण लीला: कन्हैया संग रास रचाने भगवान शंकर बने गोपी, फिर कहलाए गोपेश्वर

श्रीकृष्ण लीला: कन्हैया संग रास रचाने भगवान शंकर बने गोपी, फिर कहलाए गोपेश्वर

रासलीला, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के अलावा कोई भी पुरुष शामिल नहीं हो सकता था। एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर ध्यान में मग्न थे। लेकिन धरती लोक में वृंदावन में कृष्ण की बांसुरी की तान पर गोपियां रासलीला कर रही थी।


कन्हैया से मिलने के प्रेम में भोले भंडारी भी खुद को नहीं रोक पाए। रासलीला का हिस्सा बनने वृन्दावन खिंचे चले गए। भोलेनाथ ने गोपी का भेष धारण कर लिया और गोपियों के बीच में पहुंच गए। सुध-बुध खोकर जमकर थिरकने लगे।


भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के दूसरे एपिसोड में आज हम आपको श्रीकृष्ण और भगवान शिव की एक और मुलाकात के बारे में बताएंगे, जिसके बाद भोलेनाथ का नाम गोपेश्वर पड़ा…


बात द्वापरयुग की है। जब से भगवान विष्णु ने कृष्णावतार लिया था गोकुल में नित नए आनंद हो रहे थे। कन्हैया की लीलाओं से ब्रजमंडल में हर पल खुशी का माहौल रहता था। बाल गोपाल धीरे-धीरे बढ़े हो रहे थे और उनकी लीलाएं भी उम्र के साथ बदलती जा रही थी। वे ग्वालों के प्रिय सखा थे तो ब्रज के लोगों के लिए आनंद का दूसरा नाम। गोपियों के मन में उनके प्रति असीम प्रेम था तो ब्रज की हर नारी उन्हें अपना पुत्र मानती थी। 


ब्रज का यह स्वरूप देखकर देवताओं को भी स्वर्ग में जलन होने लगती थी। वे ब्रजवासियों को स्वर्ग के देवताओं से ज्यादा सौभाग्यशाली मानते थे, जिन्हें भगवान के इतने करीब रहने का भाग्य मिला था। भोलेनाथ भी कैलाश पर्वत पर बैठे-बैठे भगवान की लीलाओं को देखते और प्रसन्न होते रहते थे। एक बार की बात है जब कन्हैया ने गोपियों की सालों की इच्छा पूरी करने के लिए ब्रज में रास का आयोजन की बात कही। यह सुनकर ब्रज की हर नारी में हर्षोल्लास था। सभी रास की तैयारियां करने में लगे थे। 


भगवान शिव ने रासलीला में शामिल होने का बनाया मन 


भगवान शिव भी ब्रज में हो रही हर गतिविधि को देख रहे थे। तभी उनके मन में रासलीला में शामिल होकर उसका आनंद उठाने की भावना जगी। लेकिन मुश्किल यह थी कि रास में सिर्फ गोपियां मतलब स्त्रियां ही शामिल हो सकती थीं। उन्होंने अपनी यह इच्छा माता पार्वती के सामने जाहिर की। इस पर माता ने शिव जी से कहा कि उनका रास में जाना असंभव है। लेकिन भोलेनाथ तो पक्का मन बना चुके थे। तभी भोले बाबा को परेशान देखकर माता पार्वती ने एक उपाय सुझाया। उन्होंने शिव जी से कहा कि यदि आप एक ब्रजनारी का रूप धरकर गोपी स्वरूप में जाएं तो वहां आपको कोई पहचान नहीं पाएगा। 


भोलेनाथ को रास में किसी भी कीमत पर जाना था। ऐसे में उन्होंने पार्वती माता का उपाय सही लगा और उन्होंने तुरंत उसे मान लिया। इसके बाद वो दिन भी आ गया जब रात्रि में रासलीला का आयोजन होना था। ब्रज में सारी तैयारियां की जा चुकी थी। उधर भोलेनाथ का श्रृंगार शुरू हो चुका था। पार्वती माता ने स्वयं अपने हाथों से शिव जी को नारी स्वरूप के लिए तैयार किया और उनका सुंदर श्रृंगार किया। एक सुंदर गोपी का रूप धारण कर भगवान ब्रजमंडल की तरफ चल पड़े। 


आधी रात तक भोलेनाथ कन्हैया की मुरली की धुन पर नाचते रहे


थोड़े ही समय में भगवान रात्रि के अंधेरे में रासलीला के स्थान पर पहुंच गए और अन्य गोपियों के साथ शामिल हो गए। जहां उन्हें कोई भी पहचान नहीं पाया। कन्हैया के आते ही रास शुरू हो गया और सभी गोपियों समेत भगवान कृष्ण गीत-संगीत के साथ रासलीला करने लगे। इस रास की अनुपम माधुरी में सारा ब्रह्माण्ड झूम उठा। आधी रात तक भोलेनाथ कन्हैया की मुरली की धुन पर नाचते रहे। लेकिन नाचते-नाचते वे इतने खो गए कि उन्हें कुछ ध्यान ही नहीं रहा। शिव जी संगीत की स्वर लहरियों पर नाच रहे थे। उस समय भक्ति की मस्ती में शंकर भगवान के सिर से पल्लू नीचे गिर गया। 


कन्हैया ने शिव को दिया गोपेश्वर का नाम


भोलेनाथ को इस बात का भी पता नहीं चला, क्योंकि वे गोपाल की लीलाओं में नाचते-नाचते समाधि वाली परिस्थिति में चले गए। लेकिन अब भोलेनाथ को सभी ने पहचान लिया था। भगवान श्रीकृष्ण भोलेनाथ कि इस निश्छल भक्ति से बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें गोपेश्वर महादेव के रूप में सदैव ब्रज के वासी होने का वरदान दिया। रास की समाप्ति पर भोलेनाथ कैलाश लौट गए, लेकिन आज भी रास स्थल के समीप वे श्री गोपेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं। 


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