द्वापर युग में भगवान शिव योगी का भेष धारण कर गोकुल में श्रीकृष्ण को बाल रूप देखने यशोदा मां के द्वार पहुंचे हैं। पुकारते हुए कह रहे हैं…
जोगी भेषधारी शिव शंभु, ‘अलख निरंजन...... अलख निरंजन.... कहां हो प्रभु?’
एक योगी आयो री तेरे द्वार, दिखा दे मुख लाल का, ओ मैया दिखा दे मुख लाल का।
अथक कोशिशों के बाद जब मां यशोदा योगी भेषधारी शिव शंभु को श्रीकृष्ण के बाल रूप का दर्शन करवा ही देती है तो भगवान शिव झूम झूम के नाचने लगते हैं।
जोरों से कहते हैं… युग युग जीये तेरो लल्ला, ओ मैया! युग युग जीये।
मैया यशोदा कहती हैं, योगी बाबा अपनी भिक्षा तो लेते जाइए। तो भगवान शिव कहते हैं… रख ले हीरे मोती तेरे, ये पत्थर किस काम के मेरे, योगी हो गया माला माल, निरख मुख लाल का।
भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के पहले एपिसोड में आज हम आपको भगवान शिव और श्रीकृष्ण की धरती लोक में हुई मुलाकात की कथा बताएंगे। जब बाल कृष्ण के दर्शन करने महादेव साधु का वेष धारण करके धरती पर आए…
भगवान शंकर और भगवान विष्णु एक दूसरे के आराध्य हैं। अपने आराध्य प्रभु विष्णु जी की आराधना में सदैव लीन रहने वाले भगवान भोलेनाथ हमेशा भगवान विष्णु का गुणगान करते रहते हैं। जब भगवान विष्णु ने धरती पर अवतार लिया तो भोलेनाथ किसी न किसी बहाने उनके दर्शन करने जरूर आए। द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया तो उस समय भी भगवान भोलेनाथ कृष्ण भगवान की बाल लीलाओं के दर्शन करने के लिए गोकुल में आए।
भगवान भोलेनाथ कृष्ण के दर्शन को इतने व्याकुल थे कि जब वह पहली बार कन्हैया की बाल लीलाओं को देखने आए तो उस वक्त कन्हैया इतने छोटे थे कि वह यशोदा मैया की गोद में ही खेल रहे थे। भगवान भोलेनाथ एक साधु का वेश धरकर बाबा नंद के दरवाजे पर पहुंचे और अलख निरंजन का जय घोष किया। उनकी आवाज सुनते यशोदा मैया अपने महल से बाहर आई और उन्होंने पूछा कि बाबा आपको क्या चाहिए? यशोदा मैया ने उनके सामने धन, दौलत, रुपया, पैसा, माणिक, मोती, गौ दान और भू दान का प्रस्ताव रखा।
इस पर भोलेनाथ ने कहा, मुझे इनमें से कुछ नहीं चाहिए। मैं बस एक बार आपके लाल के दर्शन करना चाहता हूं। जब से कन्हैया गोकुल में आए थे। हर रोज कुछ ना कुछ घटनाएं घट रही थीं। यशोदा मैया लल्ला को लेकर बड़ी चिंतित थी। ऐसे में साधु के वेश में आए भोले शंकर पर भी उन्हें शंका हुई। इसी कारण मैया ने कहा, आप लल्ला के दर्शन के अलावा कुछ भी मांग लीजिए। लेकिन भगवान शंकर ने जवाब दिया कि मैं सर्फ कन्हैया के दर्शन करना चाहता हूं। इसके सिवाय मेरे मन में कोई और मनोकामना नहीं है।
मैया के लाख समझाने पर भी भगवान शंकर नहीं माने तो मैया ने उन्हें कह दिया कि मैं आपकी जिद पूरी नहीं कर पाऊंगी और कन्हैया को बाहर नहीं लाऊंगी। इतना कहते हुए मैया भवन में लौट गई। लेकिन भगवान शंकर समाधि लगाकर नंद बाबा के दरवाजे के बाहर बैठ गए। थोड़ी देर बाद अचानक कन्हैया महल के अंदर बहुत जोर-जोर से रोने लगे। जब लल्ला बहुत देर तक चुप नहीं हुए तो माता को चिंता होने लगी। उसने दासियों से इसका कारण पूछा तो एक वृद्ध दासी ने कहा कि हो न हो उस साधु बाबा की नजर लल्ला को लग गई है। अब वही इसे चुप करा सकते हैं।
पहले तो यशोदा मैया ने दासी की बात मानने से इनकार कर दिया। लेकिन जब कन्हैया बहुत देर तक चुप नहीं हुए तब थक-हार कर यशोदा मैया ने उस दासी की बात मान ली और कन्हैया को लेकर बाहर आ गई। मैया यशोदा ने समाधि पर बैठे भोले बाबा के पास आकर कहा कि लो बाबा दूर से ही मेरे लाल को देख लो और आशीर्वाद दो कि यह चुप हो जाए।
मैया की आवाज सुनते ही भगवान शिव के समाधि टूटी। भगवान ने पहली बार अपने आराध्य भगवान विष्णु को मनमोहक और अति सुंदर बाल स्वरूप में देखा। कन्हैया ने भी भोलेनाथ से आंखें मिलाई और उनके दर्शन किए। ब्रह्मांड की दो सबसे बड़ी शक्तियां एक-दूसरे के दर्शन कर रही थी। भोलेनाथ को देखते ही कन्हैया चुप हो गए और मुस्कुराते हुए उनकी ओर एक टक देखते रहे। उसके बाद भोलेनाथ ने मैया से कन्हैया को अपनी गोद में मांगा। इस पर मैया ने मना कर दिया। फिर भोलेनाथ ने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और कहा, ये अधूरे दर्शन क्यों प्रभू। मैया को समझाइए जरा। तभी कन्हैया फिर से रोने लगे और मैया ने जैसे ही उन्हें भोलेनाथ के हाथों में दिया वे चुप हो गए। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करने स्वयं कैलाशपति भगवान शिव धरती पर पधारे थे। बाल गोपाल ने भी शिव दर्शन का लाभ लिया।
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