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भगवान गणेश जी का स्थान देवों में सबसे पहले हैं। वे जितने श्रेष्ठ हैं, उनका उतना ही विराट और विशाल स्वरूप है। अन्य देवताओं ने युगों-युगों तक अपने स्वरूप में बदलाव नहीं किया। लेकिन गणेश जी हर युग में एक अलग रूप में भक्तों के कष्ट दूर करने आते रहे हैं। गणपति आदिदेव हैं, वही वजह है कि हर युग में उन्होंने अलग अवतार लिया।
सतयुग में गणेश जी का वाहन सिंह है और उनकी भुजाएं 10 हैं। इस युग में वे विनायक नाम से प्रसिद्ध हुए। वही श्री गणेश जी त्रेतायुग में मयूर वाहन के साथ आए। इसलिए इस युग में उनका नाम मयूरेश्वर हुआ। इस युग में गणपति ने अपनी 6 भुजाओं से दुष्टों का संहार किया। श्वेत वर्ण मयूरेश्वर भगवान इस युग में भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते रहे।
गणेश जी ने द्वापरयुग में फिर अपना स्वरूप और वाहन बदला। इस बार उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं। गजानन नाम से प्रसिद्ध वे द्वापरयुग में सारे संसार में पूजे गए। इस युग में भगवान गणेश लाल वर्ण में है। कलयुग में धूम्रवर्ण गणेश जी 2 भुजाओं वाले हैं। उनका नाम धूम्रकेतु है।
भक्त वत्सल की गणेश चतुर्थी स्पेशल सीरीज ‘गणेश महिमा’ में आज हम आपको गणेश जी के विलक्षण रूप और शारीरिक संरचनाओं का मतलब बताएंगे….
गणेश जी की चारों भुजाएं चार दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं। उनका लम्बा उदर गणेश जी के लंबोदर नाम का कारण है। यह समस्त चराचर के उनके उदर में विद्यमान होने का प्रतीक है। गणेश जी का बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार्यता को दर्शाता है।
गणेश जी के बड़े कान अधिक ग्राह्य शक्ति मतलब सुनने की क्षमता का प्रतीक है। गणपति के शरीर की तुलना में उनकी आंखें बहुत छोटी हैं। ये छोटी-पैनी आंखें सूक्ष्म दृष्टि की सूचक हैं।
वही उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है। गणेश जी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है। भगवान गणपति महाराज का बाहर हथेली वाला झुका हुआ हाथ अनंत दान के महत्व को दर्शाता है। गणेश जी का एकदंत एकाग्रता का सूचक है।
गणेश जी अपने एक हाथ में अस्त्र के रूप में अंकुश लिए हुए हैं, जिसका अर्थ है सदैव जागृत रहना है। एक और अस्त्र के रूप में वे एक हाथ में पाश लिए हुए हैं। जिसका अर्थ है परिस्थितियों पर नियंत्रण। गणेश जी का वाहन चूहा जिंदगी के जंजालों को काटकर आगे बढ़ने का प्रतीक है। गणेश जी की उत्पत्ति पार्वती जी के मैल से हुई है जो अज्ञान का प्रतीक है।
अपनी बुद्धिमत्ता के कारण देवों में सर्वश्रेष्ठ गणेश स्वयं सर्वोच्च सरलता, शान्ति और अज्ञानता को मिटाकर ज्ञान तक पहुंच जाने के प्रतीक हैं।
भगवान गणेश का मुख हाथी का है जो कि महाज्ञाता होने का प्रतीक है। साथ ही हाथी ‘ज्ञान-शक्ति’ और ‘कर्म-शक्ति’ का भी प्रतीक है। बुद्धि और सहजता हाथी की विशालता के साथ सबसे बड़े गुण हैं। हाथी कभी भी अवरोधों से नहीं डरते और न ही बाधाओं के सामने रुकते हैं। वही वे जीवन भर स्वयं का मार्ग स्वयं प्रशस्त करते हैं। ऐसे में जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो ये सभी गुण हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं।
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