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विवाह के कितने प्रकार हैं?

विवाह के कितने प्रकार हैं?

हिंदू धर्म में राक्षस और पिशाच विवाह का भी मिलता है वर्णन, जानिए कितने प्रकार के होते हैं विवाह 


हिंदू विवाह सिर्फ लव या अरेंज मैरिज तक सीमित नहीं हैं। शास्त्रों में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है। ये व्यक्ति के जीवन को सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से संवारता है। हिंदू धर्म में विवाह के 8 प्रकारों का वर्णन मिलता है। इनमें से प्रत्येक के पीछे एक खास परंपरा और धार्मिक दृष्टिकोण छिपा है। इनमें ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्रजापात्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच जैसे विवाह शामिल हैं। तो आइए इस आलेख में इन सभी विवाहों की विशेषताओं और रीतियों को विस्तार से समझते हैं। 


1. ब्रह्म विवाह:- ब्रह्म विवाह को सभी प्रकार के विवाहों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इसमें पिता अपनी पुत्री के लिए योग्य वर की खोज करता है और उसकी सहमति से विवाह करवाता है। 

रीतियां: यह विवाह पूर्ण रीति-रिवाजों और धार्मिक विधानों के साथ होता है। वर-वधू अग्नि के समक्ष सात फेरे लेते हैं।

महत्त्व: इस विवाह में वर और वधू की सहमति प्रमुख होती है। वर्तमान में अधिकांश हिंदू विवाह इसी प्रकार से किए जाते हैं।


2. देव विवाह:- देव विवाह धार्मिक कार्यों से जुड़ा होता है। इसमें पिता अपनी पुत्री का विवाह किसी धार्मिक कर्म जैसे यज्ञ या अन्य सेवा कार्य करने वाले सिद्ध पुरुष से करवाता है। 

रीतियां: कन्या की सहमति सुनिश्चित की जाती है। यह विवाह मुख्य रूप से धार्मिक क्रियाकलापों के दौरान संपन्न होता था।

महत्त्व: इसे ब्रह्म विवाह के बाद सबसे पवित्र विवाह माना जाता है। 


3. आर्ष विवाह:- आर्ष विवाह का संबंध ऋषि-मुनियों से जुड़ा है। 

रीतियां: वर कन्या के पिता को कुछ गाय और बैल दान करता है। इसके बाद कन्या का विवाह वर से कराया जाता है। 

महत्त्व: यह विवाह सतयुग में प्रचलित था और इसे सरलता और धार्मिकता का प्रतीक माना जाता है।


4. प्रजापत्य विवाह:- यह विवाह ब्रह्म विवाह से मिलता-जुलता है, लेकिन इसमें विशेष धार्मिक आदेश दिए जाते हैं।

रीतियां: कन्या के पिता वर-वधू को गृहस्थ धर्म निभाने का आशीर्वाद देते हैं। विवाह से पहले एक विशेष पूजन का आयोजन होता है। 

महत्त्व: इस विवाह से उत्पन्न संतान को पीढ़ियों को पवित्र करने वाला माना जाता है। 


5. असुर विवाह:- असुर विवाह में वर पक्ष कन्या के माता-पिता को धन देकर विवाह संपन्न करता है। 

रीतियां: वर पक्ष कन्या के माता-पिता को धन या संपत्ति देता है। इस विवाह में कन्या की सहमति को महत्व नहीं दिया जाता। 

महत्त्व: इसे निम्न श्रेणी का विवाह माना गया है। 


6. गंधर्व विवाह:- गंधर्व विवाह को आज के समय की लव मैरिज का रूप कहा जा सकता है। 

रीतियां: लड़का और लड़की एक-दूसरे की सहमति से विवाह करते हैं। इसमें कभी-कभी माता-पिता की सहमति भी शामिल होती है। 

महत्त्व: इसे स्वतंत्रता और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।  


7. राक्षस विवाह:- राक्षस विवाह को सबसे निम्न श्रेणी का विवाह माना गया है।

रीतियां: इसमें कन्या का बलपूर्वक अपहरण कर उससे विवाह किया जाता है। यह युद्ध या संघर्ष के दौरान प्रचलित था।

महत्त्व: इसे धार्मिक दृष्टि से अनुचित माना गया है।


8. पिशाच विवाह:- यह विवाह भी निम्न कोटि का माना जाता है। 

रीतियां: इसमें कन्या को धोखे या बेहोशी की हालत में विवाह के लिए मजबूर किया जाता है। जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने के बाद विवाह संपन्न किया जाता है। 

महत्त्व: इसे पूरी तरह से अनैतिक और अमान्य माना गया है।


धार्मिक संस्कार है विवाह 


हिंदू धर्म में विवाह एक सामाजिक व्यवस्था है। इसलिए इसे एक धार्मिक संस्कार भी माना जाता है। प्रत्येक प्रकार के विवाह के पीछे एक विशेष उद्देश्य और परंपरा छिपी हुई है। इनमें से कुछ विवाहों को आदर्श माना गया है। जबकि, कुछ को धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से अनुचित। इन विवाहों की जानकारी हमें हिंदू धर्म की गहराई और सांस्कृतिक विविधता को समझने में मदद करती है।


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