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नारद जयंती की कथा

नारद जयंती की कथा

Narada Jayanti Katha: पिता ब्रह्मा ने दिया था पुत्र नारद को श्राप, जानिए नारद जयंती की संपूर्ण कथा 


हिंदू धर्म के महान ऋषि और भगवान विष्णु के परम भक्त, नारद मुनि की जयंती को 'नारद जयंती' के रूप में मनाया जाता है। यह दिन वैषाख मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पड़ता है, जो इस साल 13 मई को है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नारद जी संसार के पहले पत्रकार हैं तथा उन्हें देवताओं और मनुष्यों के बीच संवाद सेतु माना जाता है।

भगवान ब्रह्मा ने दिया था आजीवन अविवाहित रहने का श्राप

नारद मुनि भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे और बचपन से ही ब्रह्मचर्य और भक्ति में अत्यंत रुचि रखते थे। एक दिन ब्रह्मा जी ने उनसे अनुरोध किया कि वे संसार की सृष्टि में सहायक बनें और विवाह करें ताकि संतति उत्पन्न हो सके। परंतु नारद जी ने इस आज्ञा को मानने से इनकार कर दिया। उनका मन केवल भगवान विष्णु की भक्ति में लीन था। साथ ही, वे सांसारिक बंधनों से दूर रहना चाहते थे और विवाह जैसी जिम्मेदारियों में नहीं बंधना चाहते थे।

ब्रह्मा जी नारद जी के व्यवहार से अत्यंत क्रोधित हो गए। फिर उन्होंने नारद जी को श्राप दिया कि ‘तू आजीवन अविवाहित रहेगा’। इस श्राप से नारद मुनि के जीवन की दिशा ही बदल गई। इसी कारण से वे अनवरत भ्रमणशील बने रहे और संसार के कोने-कोने में भगवान विष्णु की भक्ति और धर्म का प्रचार करते रहे।

नारद जी को सदा इधर उधर भटकने का मिला था श्राप

ब्रह्मा जी के बाद नारद जी को एक और श्राप राजा दक्ष से भी प्राप्त हुआ। जब नारद जी ने दक्ष की संतानें, हारीयश्व और शावल्याश्व को वैराग्य बना दिया और उन्होंने गृहस्थ जीवन को त्याग दिया, तो दक्ष अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने नारद मुनि को श्राप दिया कि वे हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकते रहेंगे और कहीं स्थिर नहीं रह पाएंगे।

नारद जी ने वीणा का किया था आविष्कार 

  • नारद जी भगवान विष्णु के प्रिये उपासक हैं। उनका जीवन भगवान की भक्ति और कीर्तन को समर्पित रहा है।
  • नारद मुनि को ब्रह्मर्षि की उपाधि प्राप्त है, जो ज्ञान, तपस्या और साधना से अर्जित की जाती है। वे वेदों और उपनिषदों के ज्ञाता हैं।
  • नारद मुनि को देवताओं और मनुष्यों के बीच संवाद सेतु माना गया है। वे हमेशा समय-समय पर विभिन्न लोकों में जाकर ज्ञान और सूचना का आदान-प्रदान करते हैं।
  • नारद जी एक महान वीणा वादक थे। कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं वीणा का आविष्कार किया और वे इसकी मधुर ध्वनि से भगवान विष्णु की स्तुति करते थे।
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