नरक चतुर्दशी, रूप चौदस या छोटी दिवाली एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो दिवाली के एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्योहार मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित है। इसी दिन नरकासुर नामक राक्षस को भगवान श्रीकृष्ण ने काली और सत्यभामा की सहायता से नरक पहुंचाया था। इसी लिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
इस दिन धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव मनाने की परंपरा है। मान्यता है कि ब्रह्म मुहूर्त में भगवान कृष्ण ने राक्षस का वध करने के बाद तेल से स्नान किया था। यही कारण है कि इस दिन भोर से पहले तेल स्नान करना बहुत भाग्यशाली माना जाता है। नरक चतुर्दशी को काली चौदस, रूप चौदस, भूत चतुर्दशी और नरक निवारण चतुर्दशी भी कहा जाता है।
विक्रम संवत के हिंदू कैलेंडर में नरक चतुर्दशी कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चौदस को आती है। दिवाली के 5 दिनों के त्योहार में यह दूसरा दिन होता है। साल 2024 में नरक चतुर्दशी 31 अक्टूबर, गुरुवार को है।
जहां भारत के ज्यादातर हिस्सों में नरक चतुर्दशी दिवाली के पहले मनाई जाती है। वहीं तमिलनाडु, कर्नाटक और गोवा में नरक चतुर्दशी दिवाली के दिन ही मनाई जाती है। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में इसे दीपावली भोगी के नाम से मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं में पहला वर्णन यही है कि भगवान कृष्ण द्वारा इस दिन नरकासुर का वध किया था। इसमें देवी काली द्वारा भी उनके सहयोग का उल्लेख है। इसलिए इस दिन को काली चौदस भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में बहुत प्रचलित है। इन्हीं मान्यताओं के अनुसार नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। गोवा में इस दिन बुराई के प्रतीक नरकासुर के पुतले जलाए जाते हैं।
पश्चिम बंगाल में इस दिन को भूत चतुर्दशी भी कहा जाता है। यहां मान्यता है कि इस दिन दिवंगत लोगों की आत्माएं धरती पर अपने प्रियजनों से मिलने आती हैं। तमिलनाडु में इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है। इस दिन यहां एक विशेष आहार प्रतिबंध होता है या उपवास भी रखते हैं जिसे 'नोम्बू' कहा जाता है।
उबटन और तेल को लगाकर स्नान करना ही अभ्यंग स्नान कहलाता है। नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान किया जाता है। ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है। इसे प्रात:काल सूर्य उदय से पहले करने का महत्व है। इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश की जाती है। उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाया जाता है और उसको जल में मिलाकर उससे स्नान किया जाता है।
यदि ऐसा न कर सके तो मात्र चंदन का लेप लगाकर सूख जाने के बाद तिल एवं तेल से स्नान कर सकते हैं। स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है जो सौंदर्य और ऐश्वर्य देने वाले हैं। इसके बाद दक्षिण दिशा में मुख करके हाथ जोड़कर यमराज को प्रणाम करें।
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