हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का हर दिन विशिष्ट महत्व रखता है। यह पखवाड़ा पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए समर्पित होता है। इसी क्रम में वर्ष 2025 में पितृपक्ष का छठा श्राद्ध 12 सितम्बर, शुक्रवार को मनाया जाएगा, जिसे षष्ठी श्राद्ध या छठ श्राद्ध कहा जाता है।
षष्ठी श्राद्ध उन मृतक परिजनों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि को हुई हो। चाहे वह शुक्ल पक्ष की षष्ठी हो या कृष्ण पक्ष की, इस दिन उनका श्राद्ध करने का विधान है। इस तिथि पर विधिपूर्वक किए गए तर्पण और पिंडदान से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों के आशीर्वाद से संतान को उन्नति, परिवार को सुख-समृद्धि और जीवन में स्थिरता प्राप्त होती है।
इस वर्ष षष्ठी श्राद्ध के शुभ समय इस प्रकार हैं—
श्राद्ध से जुड़े सभी अनुष्ठान इन शुभ समयावधियों में करना सबसे फलदायी माना गया है।
गरुड़ पुराण और धर्मसिन्धु जैसे ग्रंथों में श्राद्ध की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इनके अनुसार, पितरों को अर्पित किया गया तर्पण और पिंडदान सीधे उन्हें प्राप्त होता है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इससे परिवार में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुख-शांति का वास होता है।