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छठ को प्रकृति की पूजा के महापर्व के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को सबसे कठिन पर्वों में से एक माना गया है। इसमें स्वच्छता और पवित्रता को बनाए रखना होता है। इस वर्ष छठ पूजा की शुरुआत 05 नवंबर से नहाय-खाय के साथ हो रही है। छठ पर्व की तैयारियां खासतौर से पवित्रता पर ही आधारित होती है। क्योंकि, इस पर्व में शुद्धता के साथ साधना का विशेष महत्व है। तो आइए जानते हैं छठ पूजा से पहले घरों में और छठ घाट पर की जाने वाली विभिन्न तैयारियों के बारे में विस्तार से।
छठ से पहले घरों की साफ-सफाई करना सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है। हालांकि, दीपावली के दौरान ही लोग अपने घरों की साफ सफाई का काम पूरा कर लेते हैं। पर छठ पर्व में स्वच्छता का अति विशिष्ट स्थान है। छठ पूजा में व्रतियों को पवित्रता का पालन करते हुए ही पूजा अर्चना करना पड़ता है। पूजा करने वाले घर के सभी सदस्य मिलकर पूरे घर की सफाई करते हैं। विशेष रूप से पूजा का स्थान और वह जगह जहां छठ पर्व का प्रसाद तैयार किया जाता है उसे पूरी तरह से शुद्ध और स्वच्छ किया जाता है।
नहाय-खाय से इस महापर्व की शुरुआत हो जाती है। जिसका अर्थ होता है कि व्रतियों को इस दिन स्नान ध्यान कर स्वच्छ भोजन ग्रहण करना होता है। नहाय-खाय के दिन व्रती शुद्धता और सात्विकता का पालन करते हुए कद्दू की सब्जी और चावल खाते हैं। इस दिन के बाद व्रती 36 घंटों तक कठोर उपवास करते हैं।
छठ पूजा में तालाब, नदी या फिर जल स्रोत का विशेष महत्व होता है। क्योंकि, सूर्यदेव को पानी में खड़े होकर ही अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इसलिए, पूजा से पहले घाटों की सफाई करना भी जरूरी कार्य है। परंपरागत रूप से लोग छठ से पहले घाट पर पहुंचकर पूरी श्रद्धा और समर्पण से घाटों की सफाई में जुट जाते हैं। इसमें प्रशासन द्वारा भी मदद की जाती है।
छठ पूजा के दौरान जहां एक तरफ घाट की साफ-सफाई होती है। वहीं, दूसरी तरफ जलाशय की सफाई भी की जाती है। नदी, तालाब या अन्य जल स्रोतों के अंदर भी सफाई की जाती है ताकि व्रती जब अर्घ्य देने के लिए जल में प्रवेश करें, तो उन्हें किसी प्रकार की परेशानी अथवा पानी के अंदर किसी चीज से चोट न लगे। व्रती आमतौर पर जलाशय के उस स्थान पर जाते हैं जहां पानी की गहराई कम होती है। इसीलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी होता है कि जलाशय के तल में कोई ऐसी वस्तु ना रहे जो उनके लिए परेशानी का सबब बन जाए।
छठ पूजा में प्रसाद का काफी महत्व होता है। खासकर ठेकुआ, नारियल और चावल के लड्डू आदि छठ पूजा के प्रमुख प्रसाद होते हैं। इन प्रसाद को बनाने से पहले अनाज को अच्छी तरह से साफ किया जाता है। छठ पूजा में यह परंपरा है कि प्रसाद को मिट्टी के चूल्हे पर ही तैयार किया जाता है। चूल्हे को बनाने के लिए एक विशेष जगह निर्धारित की जाती है जो पूरी तरह से साफ और पवित्र होती है। प्रसाद बनाने के दौरान व्रती महिलाएं पारंपरिक छठ के गाने गाती हैं और पूजा के लिए प्रसाद को बड़ी श्रद्धा और भक्ति से तैयार करती जाती हैं।
छठ व्रतियों के लिए विशेष रूप से तैयारियां की जाती हैं। व्रती महिलाएं और पुरुष 36 घंटों तक उपवास रखते हैं। इसलिए, उनके लिए घर में एक विशेष जगह निर्धारित की जाती है जहां वे पूजा कर सकें। इस जगह को पूरी तरह से पवित्र रखा जाता है। बता दें कि घरों की साफ-सफाई से लेकर घाट की सजावट तक छठ पूजा में हर कदम छठ पर्व की पवित्रता और परंपरा को बनाए रखने के लिए उठाया जाता है। यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने और उसे सम्मानित करने का अनूठा तरीका माना जाता है।
छठ पूजा में तैयारियां केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं होती, बल्कि यह पर्व एक सामूहिक प्रयास और समाज की एकजुटता का प्रतीक है। छठ पूजा का महत्व सिर्फ एक घर तक ही सीमित नहीं रहता। बल्कि, समाज और आस-पड़ोस में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है। लोग मिलजुल कर घाट की सफाई और सजावट का कार्य पूरा करते हैं। यह पर्व एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है। समाज के लोग एक-दूसरे के साथ हिल-मिल कर प्रसाद का वितरण करते हैं और एक-दूसरे की भरपूर मदद भी करते हैं। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाता है कि छठ पूजा के दौरान श्रद्धालुओं को कोई असुविधा ना हो।
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