हिमाचल प्रदेश की सुरम्य पहाड़ियों के बीच स्थित, हाटकोटी में हाटेश्वरी माता मंदिर आध्यात्मिक महत्व और सांस्कृतिक विरासत का एक दिव्य निवास स्थान है। ये प्राचीन मंदिर अत्यधिक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है, जो तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों दोनों को समान रूप से आकर्षित करता है। ये खूबसूरत मंदिर पेड़ों से ढकी राजसी घाटी के बीच पब्बर नदी के तट पर स्थित है।
हाटेश्वरी माता मंदिर देवी हाटेश्वरी को समर्पित है, जो दुर्गा देवी का अवतार है, जिन्हें शक्ति और सुरक्षा की देवी कहा जाता है। मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक हिमाचली और इंडो-आर्यन शैलियों का एक उत्कृष्ट मिश्रण है, जो जटिल लकड़ी की नक्काशी और पत्थर की मूर्तियों को प्रदर्शित करती है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही, एक पंक्ति में स्थित तीन मंदिर दिखाई देते है, जो सभी पत्थर से बने हैं। मंदिर के अंदर देवी की आठ भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित है। मंदिर परिसर के चारों ओर सुंदर बगीचे और पत्थर के रास्ते हैं जो भक्तों को शांति और ध्यान की यात्रा पर ले जाते हैं।
हाटेश्वरी माता मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है। माना जाता है कि इसका निर्माण 7 वीं शताब्दी ईस्वी में कटोच राजवंश द्वारा किया गया था, जिन्होंने उस युग के दौरान इस क्षेत्र पर शासन किया गया था। मंदिर में सदियों से विभिन्न नवनीकरण और परिवर्तन हुए हैं, जो विभिन्न कालखंडों के विविध वास्तुशिल्प प्रभावों को दर्शाते हैं। किंवदंती है कि महाभारत के समय में देवी हाटेश्वरी पांडवों और कौरवों दोनों द्वारा पूजनीय थी और यह मंदिर विभिन्न देवताओं की तपस्या का स्थान माना जाता है।
मंदिर के आसपास के क्षेत्र का उल्लेख विभिन्न हिंदू धर्म ग्रंथों और पुराणों में भी मिलता है, जिससे इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बढ़ जाता है। माता हाटेश्वरी का मंदिर विशकुल्टी, राईनाला और पब्बर नदी के संगम पर सोनपुरी पहाड़ी पर स्थित है। मूलरूप से यह मंदिर शिखर आकार नागर शैली में बना हुआ था बाद में एक श्रद्धालु ने इसकी मरम्मत कर इसे पहाड़ी शैली के रूप में परिवर्तित कर दिया। मंदिर के दक्षिण पश्चिम में चार छोटे शेखर शैली के मंदिर देखने को मिलते हैं। ये मुख्य अर्धनारीश्वर मंदिर के अंग माने जाते है।
हाटेश्वरी माता मंदिर अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है, जो साल भर बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है। ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर अपने उपासकों को सुरक्षा, शक्ति और समृद्धि का आशीर्वाद देता है। इसे हिंदू आस्था के अनुयायियों, विशेषकर देवी दुर्गा के भक्तों के लिए एक आवश्यक तीर्थ स्थल भी माना जाता है।
मंदिर के गर्भगृह में हाटेश्वरी माता की मूर्ति है, जो महिषासुर का वध कर रही है। मूर्ति की ऊंचाई 1.2 मीटर है। ये मूर्ति 7वीं शताब्दी की बनी हुई हैं। मूर्ति के 8 हाथ है। माता के बाएं हाथ में महिषासुर का सिर है। बताया जाता है कि माता का दाहिना पैर भूमिगत है। माता के एक हाथ में चक्र और बाएं हाथ में से एक में रक्तबीज है। गर्भगृह की मूर्ति के दोनों तरफ 7वीं और 8वीं शताब्दी के अघोषित अभिलेख है। सिंहासन के पीछे आर्च पर नवदुर्गा हैं, जिसके नीचे वीणाधारी शिव और इंद्र की अगुवाई में दूसरे भगवान हैं। दोनों तरफ हयग्रीव घोड़ा और हाथी ऐरावत है। इसके अलावा गर्भगृह में देवी के बगल में परशुराम का एक ताम्र का कलश रखा गया है।
हाटेश्वरी माता मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार के बाईं ओर एक ताम्र कलश लोहे की जंजीर से बंधा है जिसे स्थानीय भाषा में चरु कहा जाता है। चरु के गले में लोहे की जंजीर से बंधी है। यहां सावन भादों में जब पब्बर नदी में बाढ़ की स्थिति पैदा होती है तब हाटेश्वरी मां का ये चरु सीटियां भरता है और भागने का प्रयास करता है। मंदिर के दूसरी ओर बंधी चरु नदी के वेग से भाग गया था, जबकि पहले वाले को मंदिर पुजारी ने पकड़ लिया था। चरु पहाड़ी मंदिरों में कई जगह देखने को मिलते है। इनमें यज्ञ में ब्रह्मा भोज के लिए बनाया गया हलवा रखा जाता है।
हवाई मार्ग - यहां के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट कांगड़ा एयरपोर्ट है। यहां से आप टैक्सी या अन्य स्थानीय परिवहन के द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते है।
रेल मार्ग - नजदीकी रेलवे स्टेशन कांगड़ा है। यहां से आप टैक्सी या बस के द्वारा हाटेश्वरी मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - धर्मशाला से हाटेश्वरी मंदिर की दूरी 45 किमी है, आप टैक्सी या निजी वाहन से यहां आराम से पहुंच सकते हैं।
भगवान परशुराम का जन्म राजा जीमूतवाहन और उनकी पत्नी रेणुका के घर हुआ था। वे ब्राह्मण कुल से थे, लेकिन उनके कार्यक्षेत्र में शस्त्र-विद्या का ज्ञान और युद्धकला का अभ्यास था। उन्हें भगवान विष्णु के दशावतार में एक माना जाता है। परशुराम जी ने भगवान शिव से भी शिक्षा ली थी।
श्यामा तेरे चरणों की,
राधे तेरे चरणों की,
जगन्नाथ यानी कि जगत के स्वामी या संसार के प्रभु। यह उनके ब्रह्म रूप और संसार के पालनहार के रूप को दर्शाता है। भगवान जगन्नाथ की पूजा विशेष रूप से "रथ यात्रा" के दौरान होती है, जो एक प्रसिद्ध हिन्दू त्योहार है। यह यात्रा पुरी में आयोजित होती है और हर साल लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं।
सिंघ सवारी महिमा भारी,
पहाड़ों में अस्थान तेरा,