आदिशक्ति मां जगदम्बा की महिमा का बखान करना बड़े-बड़े ऋषि मुनियों, देवताओं और स्वयं त्रिदेव के सामर्थ्य के बाहर है। यह बात भक्त वत्सल नहीं हमारे सनातन धर्म के वेद पुराण स्वयं कहते हैं। लेकिन मैय्या के गुणगान के लिए समय-समय पर अनेकों विद्वानों और महर्षियों ने अपनी विवेक शक्ति से कुछ ग्रंथों की रचना की है। इन पवित्र ग्रंथों में मां के विषय में अथाह ज्ञान बड़ी ही सुंदर शैली में वर्णित है। युगों युगों से हम इन धर्म ग्रंथों का अनुसरण करते आ रहे हैं और मां की आराधना कर रहे हैं। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक में हम आपको इस लेख में मैय्या का गुणानुवाद करने वाले प्रमुख चार ग्रंथों की जानकारी देने जा रहे हैं।
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित अठारह हजार श्लोकों वाली देवी भागवत पुराण माता का सबसे प्रमुख ग्रंथ है। इसे देवी भागवतम, भागवत पुराण, श्रीमद भागवतम और श्रीमद देवी भागवतम के नाम से भी जाना गया है। देवी को समर्पित यह संस्कृत पाठ हिंदू धर्म के अठारह प्रमुख महा पुराणों में शामिल है, जो सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, वंशानुकीर्ति, मन्वन्तर आदि पाँचों लक्षणों का विस्तार से उल्लेख करता है।
देवी महात्म्य या देवी महात्म्यम माता की महिमा का बखान करने वाले सबसे श्रेष्ठ ग्रंथों में से एक है। इसका अर्थ ही देवी की महिमा होता है। इसके अनुसार देवी ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति और निर्माता हैं। यह मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है और इसे दुर्गा सप्तशती, शत चंडी और चंडी पाठ के नाम से भी जाना जाता है । इसमें 13 अध्याय और 700 श्लोक हैं। देवी महात्म्यम में राक्षस महिषासुर के वध का वर्णन है। वहीं इसमें महिषासुरमर्दिनी देवी के क्रोधित रूप का भी बखान है।
मार्कण्डेय पुराण को सबसे प्राचीनतम पुराणों में से एक कहा जा सकता है। इसे मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठि को सुनाया था। भगवती की महिमा सुनाते इस पुराण में दुर्गासप्तशती की कथा एवं माहात्म्य की सुन्दर कथाओं में महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के चरित्र का वर्णन बड़े ही विस्तार से किया गया है।
देवी की आराधना के दौरान इस अथर्वशीर्ष के पाठ करने से अथर्वशीर्ष गणपति, शिव, नारायण एवं सूर्य अथर्वशीर्ष चारों के पाठ का फल प्राप्त होता है। इस अथर्वशीर्ष का पाठ करने से पापों का नाश, महासंकट से मुक्ति और जीवन में सिद्धि प्राप्त होती है। यह देवी आराधना के सर्व श्रेष्ठ माध्यमों में से एक है।
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
मंगल की सेवा, सुन मेरी देवा, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े।
पान सुपारी, ध्वजा, नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट करे॥
आरती श्री वृषभानुसुता की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि, विमल विवेक विराग विकासिनि।
आरति श्रीवृषभानुलली की, सत-चित-आनन्द कन्द-कली की॥
भयभन्जिनि भवसागर-तारिणी, पाप-ताप-कलि-कलुष-निवारिणी,