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आंध्र प्रदेश का श्रीमल्लिकार्जुन मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ये ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदीं के तट पर श्रीशैलम नाम के पर्वत पर स्थित है। श्रीशैलम पर्वत करनूल जिले के नल्ला-मल्ला नामक घने जंगलों के बीच है। नल्ला मल्ला का मतलब है कि सुंदर और ऊंचा। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरे स्थान पर है। इस स्थान को दक्षिण का कैलाश पर्वत कहा गया है। महाभारत में दिए गए वर्णन के मुताबिक, श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है। माता पार्वती का नाम मल्लिका है और भगवान शिव को अर्जुन कहा जाता है। यहां भगवान शिव की मल्लिकार्जुन रुप में पूजा होती है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग देवी का शक्तिपीठ भी है। यहां माता सती की गरदन गिरी थी।
पुरातत्व विभाग के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण कार्य लगभग दो हजार साल पुराना है। इस ऐतिहासिक मंदिर के निर्माण में कई बड़े-बड़े राजाओं का योगदान रहा है। मंदिर का इतिहास दूसरी शताब्दी से मिलता है। इस मंदिर में पल्लव, चालुक्य, काकतीय, रेड्डी आदि राजाओं ने विकास कार्य करवाए थे। 14वीं शताब्दी में प्रलयवम रेड्डी ने पातालगंगा से मंदिर तक सीढ़ीदार मार्ग का निर्माण करवाया था। विजयनगर साम्राज्य के राजा हरिहर ने मंदिर के मुख्यमंडपम और दक्षिण गोपुरम का निर्माण करवाया था। 15वीं शताब्दी में कृष्णदेव राय ने राजगोपुरम का निर्माण करवाया था। इसके साथ ही उन्होंने यहां पर एक सुंदर मंडपम का निर्माण भी करवाया था, जिसका शिखर सोने का बना हुआ हैं। वर्ष 1667 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस मंदिर में उत्तरी गोपुरम का निर्माण करवाया और उन्होंने मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर धर्मशाला भी बनवाई थी।
पौराणिक कथा के अनुसार शिव पार्वती के पुत्र कार्तिकेय और गणेश भगवान दोनों में इस बात पर विवाद हुआ कि पहले किसका विवाह होना चाहिए। इस विवाद को शांत करने के लिए दोनों अपने माता पिता के पास गए। उनेक विवाद का समाधान करने के लिए माता पार्वती और भगवान शिव ने कहा कि तुम दोनों में जो भी इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहां पहुंचेगा उसी का विवाह पहले होगा। माता पिता की शर्त को पूरा करने के लिए स्वामी कार्तिकेय जी अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए चले गए, इधर स्थूलकाय श्री गणेश जी और उनका वाहन भी चूहा, भला इतनी शीघ्रता से वे परिक्रमा कैसे कर सकते थे। गणेश भगवान के सामने एक बड़ी समस्या उपस्थित थी। गणेश जी शरीर से जरुर स्थूल है, किंतू वे बुद्धि के सागर हैं। उन्होंने अपने माता पार्वती एवं देवाधिदेव महादेव को एक आसन पर विराजमान होने को कहा और उनकी सात परिक्रमा कर ली। भगवान शिव और माता पार्वती उनकी चतुर बुद्धि को देखकर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह करा दिया। इस बात से दुखी होकर भगवान कार्तिकेय कैलाश छोड़कर क्रौंच पर्वत पर आकर निवास करने लगे। इधर कैलाश पर माता पार्वती का मन पुत्र स्नेह से व्याकुल होने लगा। माता पार्वती भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर पहुंच गई। क्योंकि स्वामी कार्तिकेय जी को पहले ही अपने माता पिता के आगमन की सूचना मिल गई थी, इसलिए वे वहां से तीन योजन अर्थात छत्तीस किलोमीटर दूर चले गए। कार्तिकेय के चले जाने पर भगवान शिव क्रौंच पर्वत पर ज्योर्तिलिंग के रुप में प्रकट होकर स्थापित हो गए।
जैसे ही आप मंदिर के पास पहुंचेंगे तो आपको दर्शन के लिए अलग-अलग लाइन लगी दिखाई देगी। आपको टिकट काउंटर से फ्री दर्शन का टिकट लेना होगा। अगर आप जल्दी दर्शन करना चाहते है तो 150 रुपये का टिकट ले सकते हैं। मंदिर के पास ही क्लॉक रुम बने है, यहां पर आप मोबाइल, कैमरा व अन्य सामान जमा कर सकते है। मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर आप नंदी मंडप पहुंचेंगे। वहां नंदी जी के दर्शन करके आप मंदिर में गर्भगृह के पास पहुचेंगे। इस गर्भगृह का शिखर सोने का बना है। गर्भगृह में आपको भगवान शिव के दर्शन होंगे।
मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे कुछ सीढ़ियों चढ़ने पर आदिशक्ति देवी भ्रमरम्बा का मंदिर है। बावन शक्तिपीठों में से इस पवित्र धाम में सती माता की गरदन गिरी थी। यहां पर मंदिर में शक्ति को देवी महालक्ष्मी के रुप में पूजा जाता है। माता के दर्शन के साथ गर्भगृह में स्थापित श्रीयंत्र के दर्शन और सिंदूर से उसका पूजन जरुर करें।
मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर सुबह 5:30 बजे से दोपहर 1 बजे तक खुला रहता है। इसके बाद शाम को 6 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। इस मंदिर में आरती सुबह 5:15 से 6:30 बजे तक होती है और शाम को 5:20 से 6 बजे तक होती है। यहां पर प्रसाद में लड्डू का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
मल्लिकार्जुन मंदिर परिसर 2 हेक्टेयर की जगह में एक विशाल परिसर के रुप में स्थित है। यह 28 फीट लंबी और 600 फीट ऊंची दीवारों से घिरा हुआ हैं। जिससे मुख्य मंदिर श्री मल्लिकार्जुन और माता भ्रामराम्बा के है। मंदिर के गर्भगृह में 8 ऊंगल ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। इन मंदिरों के साथ कई अन्य मंदिर जैसे वृद्ध मल्लिकार्जुन, सहस्त्र लिंगेस्वर, अर्ध नारीश्वर, वीरमद, उमा महेश्वर आदि बने हुए हैं। इस मंदिरों में खंबे, मंडप और झरने आदि बने हुए हैं।
हवाई मार्ग - आपको श्रीशैलम जाने के लिए हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट आना होगा। यहां के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों से प्लाइट की सुविधा उपलब्ध है। शहर से लगभग 30 किमी दूरी पर स्थित एस एयरपोर्ट से श्रीशैलम जाने के लिए टैक्सी आसानी से मिल जाती है।
रेल मार्ग - यहां से निकटतम रेलवे स्टेशन कंबम है। जो कि श्रीशैलम से 60 किमी दूर है। यहां बहुत कम ट्रेन रुकती है। हिंदीभाषी राज्यों के लिए सबसे सुविधा जनक तीसरा रेलवे स्टेशन हैदराबाद है। हैदराबाद में तीन मुख्य रेलवे स्टेशन हैदराबाद रेलवे स्टेशन, सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन और कुचिगुडा रेलवे स्टेशन है। हैदराबाद रेलवे स्टेशन के पास MGBS बस स्टैंड है जो कि 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां से श्रीशैलम जाने के लिए टैक्सी , कार और बसें उपलब्ध है।
सड़क मार्ग - मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग सड़क मार्ग से देश के सभी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा है। यहां जाने के कई शहरों से बस सेवा उपलब्ध है। आप बस या टैक्सी के द्वारा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग पहुंच सकते हैं।
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