सुईया पहाड़ जहां हर कदम चुनौतीपूर्ण

सुईया पहाड़ जहां हर कदम चुनौतीपूर्ण, लहूलुहान हो जाते हैं पैर


सुईया पहाड़, कांवरिया यात्रा का एक ऐसा स्थान है जो हर भक्त के समर्पण और धैर्य की कठिन परीक्षा लेता है। यहां की दुर्गम चढ़ाई, संकीर्ण पगडंडियां और नुकीले पत्थरों से भरा रास्ता किसी भी श्रद्धालु के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस पहाड़ को पार करना किसी  के लिए भी किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होता। कई भक्त इस स्थान पर आकर थकान और कठिनाइयों के कारण वापस लौटने का निर्णय ले लेते हैं, जबकि कुछ बिना रुके बाबा बैद्यनाथ तक पहुंचने के लिए दृढ़ संकल्पित रहते हैं।


भक्ति और तपस्या का मार्ग 


प्राचीन समय में, जब यात्रा के दौरान कोई आधुनिक सुविधा नहीं थी, तब इस रास्ते से गुजरने वाले भक्तों और कांवरियों को इस दुर्गम क्षेत्र को पार करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। पैरों में नुकीले पत्थरों की चोटों से रक्तस्राव होना तो आम बात थी। लेकिन भक्ति की शक्ति इतनी गहरी थी कि लोग इन सभी कष्टों को सहन कर उत्तर वाहिनी गंगा से जल भरकर 120 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा तय कर लेते थे। लगभग 35-40 साल पहले केसरिया पहाड़ और सुईया पहाड़ का नाम सुनते ही लोगों की रूह कांप जाती थी, लेकिन भक्तों का समर्पण बाबा बैद्यनाथ के प्रति अटूट था इसलिए भक्त सारी बाधाओं को पार कर अंततः अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाते थे I


सुईया पहाड़ की चुनौतीपूर्ण यात्रा 


बिहार के बांका जिले के चांदन प्रखंड के अंतर्गत आने वाला सुईया पहाड़ अपने नाम के कारण प्रसिद्ध हो गया है। यह यात्रा का सबसे कठिन और खतरनाक हिस्सा माना जाता है। यह क्षेत्र लगभग 10 किलोमीटर लंबा है, जिसमें भक्तों को नुकीले पत्थरों, खड़ी चढ़ाइयों और संकीर्ण पगडंडियों से गुजरना पड़ता है। भक्तों को अपने श्रद्धा और बाबा बैद्यनाथ के प्रति प्रेम से इस यात्रा को संपूर्ण कर पाते हैं। हालांकि, इस पहाड़ के उस पार पहुंचते ही कांवरियों का शरीर थकावट से चूर हो जाता है, और उन्हें विश्राम की सख्त जरूरत महसूस होती है।


यात्रा मार्ग का विवरण 


देवघर के लिए पैदल यात्रा की शुरुआत सुलतानगंज से होती है, जहां से भक्त नदी पार कर मुंगेर जिले के कुमरसार तक पहुंचते हैं। धौरी के पास बांका जिले की सीमा में प्रवेश करने के बाद, पैदल चल रहे भक्तों का सामना जिलेबियामोड़ के पास पहाड़ों और जंगलों से होता है। यात्रा के कुछ हिस्सों में रास्ते अपेक्षाकृत सुगम होते हैं, लेकिन अधिकांश यात्रा दुर्गम पहाड़ों और घने जंगलों से होकर गुजरती है। इन क्षेत्रों में कांवरियों को अधिक सुरक्षा और सुविधा की आवश्यकता होती है।


यहां के चकमक पत्थर हैं विशेष


सुईया पहाड़ के चकमक पत्थर अपनी नुकीली और कठोर बनावट के लिए जाने जाते हैं, जो यात्रा को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। ये पत्थर अत्यधिक सख्त होते हैं, जिससे पैदल चलने वाले भक्तों के पैर आसानी से लहूलुहान हो जाते हैं। इन पत्थरों पर चलना केवल शारीरिक ताकत नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता की भी परीक्षा लेता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इन चकमक पत्थरों पर चलकर यात्रा करने से भक्तों के पापों का शमन होता है और वे आध्यात्मिक शुद्धि की ओर बढ़ते हैं। 


सरकारी और निजी व्यवस्थाओं की कमी 


विडंबना यह है कि इतने दुर्गम और कठिन यात्रा मार्ग के बावजूद, कांवरियों को सबसे कम सुविधाएं इसी क्षेत्र में मिलती हैं। यहां के रास्ते में न तो पर्याप्त सुरक्षा के इंतजाम होते हैं और न ही निजी या सरकारी स्तर पर सुविधाओं का विस्तार। कांवरियों के लिए इस कठिन यात्रा में पानी, चिकित्सा और विश्राम के स्थानों की कमी गंभीर समस्या है। यह क्षेत्र अधिक सुरक्षा और सहायता की मांग करता है, ताकि श्रद्धालु इस यात्रा को सुरक्षित और सुगम तरीके से पूरा कर सकें।


सुईया पहाड़ की आध्यात्मिकता 


सुईया पहाड़ केवल एक भौतिक बाधा नहीं है, बल्कि यह भक्तों के धैर्य, तप और श्रद्धा का प्रतीक भी है। हर साल लाखों भक्त और कांवरिये, इन कठिनाइयों को पार करते हुए, बाबा बैद्यनाथ के जलाभिषेक के लिए समर्पित रहते हैं। यह यात्रा न केवल भक्तों की शारीरिक परीक्षा लेती है, बल्कि उनकी मानसिक और आध्यात्मिक दृढ़ता का भी प्रमाण है।

श्रद्धालुओं के बीच यह मान्यता है कि जो भी इस कठिन मार्ग को पार कर बाबा बैद्यनाथ तक पहुंचता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सुईया पहाड़ को पार करना भले ही एक कठिन परीक्षा हो, लेकिन यह भक्ति और श्रद्धा का मार्ग है, जो अंततः मुक्ति और आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है। 


 


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