कार्तिक माह की पूर्णिमा को देव दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। इस वर्ष ये पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा जो सुबह 6:20 बजे से शुरू होकर मध्यरात्रि 2:59 बजे समाप्त होगा। विशेष बात यह है कि इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर गजकेसरी और शश राजयोग का निर्माण हो रहा है। इस दिन भगवान विष्णु मत्स्य अवतार में जल में निवास करते हैं। इसलिए, जल में दीपदान की भी परंपरा है। आइए विस्तार से जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा पर बनने वाले शुभ योग के बारे में।
इस साल कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है, जो लगभग 30 वर्षों के बाद बन रहा है। इस योग के दौरान चंद्रमा और मंगल ग्रह एक-दूसरे की राशि में स्थित होंगे। जिससे गजकेसरी राजयोग का निर्माण होगा। साथ ही बुधादित्य राजयोग भी इस दिन बनेगा। ये योग शुभ फल प्रदान करता है। इन योगों में किए गए दान और पुण्य के कार्य विशेष लाभकारी माने जाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल शश राजयोग का निर्माण भी हो रहा है जो व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और सुख-शांति लाने में सहायक माना गया है।
इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा का पर्व 15 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। इस दिन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ सुबह 6:20 बजे होगा और इसका समापन रात 2:59 बजे होगा। इस पूरे दिन को विशेष पुण्यदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने, दान करने और जरूरतमंदों की सहायता करने से अत्यधिक लाभ मिलता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, सरस्वती या किसी भी पवित्र जल स्रोत में स्नान करना विशेष फलदायी माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और घर में सुख-शांति का वास होता है। इसके अलावा इस दिन दीपदान का भी विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली के रूप में मनाया जाता है और इस दिन जल में दीपदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और घर में समृद्धि का आगमन होता है।
कार्तिक मास की पूर्णिमा को लेकर एक विशेष धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दिन मत्स्य अवतार में जल में निवास करते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था, जिससे इसे त्रिपुरासुर पूर्णिमा भी कहा जाता है। भगवान विष्णु के जल में निवास करने की मान्यता के कारण इस दिन जल में दीप जलाने की परंपरा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे देवताओं की दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है और जल में दीपदान से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन भगवान शिव भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना भी अत्यंत लाभकारी माना गया है। माना जाता है कि इस दिन की गई पूजा से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, सुख और शांति आती है। इसके साथ ही दान-पुण्य का भी विशेष महत्व होता है। पवित्र नदी में स्नान के बाद जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करना शुभ माना गया है। साथ ही भूखे लोगों को भोजन कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है। बता दें कि कार्तिक पूर्णिमा का यह पर्व गजकेसरी योग और शश राजयोग के निर्माण के साथ अत्यंत शुभ फल देने वाला है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दीपदान, पूजा और दान-पुण्य से जीवन में सुख-समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती है।
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पितृपक्ष की शुरूआत हो चुकी है, ये 16 दिन हमारे पूर्वजों और पितरों को समर्पित होते हैं। इस दौरान किए गए श्राद्ध-तर्पण से घर-परिवार के पितर देवता तृप्त होते हैं और परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं।
पितृपक्ष की शुरूआत होते ही हम अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण आदि करने के लिए पवित्र नदियों के तट की तलाश में लग जाते हैं, जहां इस दौरान बहुत भीड़ देखने को मिलती है। सभी लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पवित्र घाटों पर जाकर तर्पण करते हैं।
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