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छिन्नमस्तिका देवी मंदिर का रहस्य

छिन्नमस्तिका देवी मंदिर का रहस्य

Chinnamasta Devi Mandir: तांत्रिक विद्या के सबसे बड़े शक्तिपीठ का रहस्य, बिना सिर वाले माता की होती है पूजा


झारखंड राज्य के रामगढ़ जिले में स्थित रजरप्पा का छिन्नमस्तिका देवी मंदिर एक अद्भुत शक्तिपीठ है, जहां बिना सिर वाली देवी की पूजा की जाती है। यह मंदिर तांत्रिक विद्या के लिए भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह स्थान विशेष और रहस्यमय महत्व रखता है। 

तांत्रिक परंपराओं का प्रतीक है यह मंदिर 

रजरप्पा स्थित यह मंदिर भैरवी और दामोदर नदियों के संगम पर स्थित है, जो इसे एक सुंदर धार्मिक स्थल बनाता है। मंदिर की स्थापत्य कला असम के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर से मिलती-जुलती है, जो तांत्रिक परंपराओं का प्रतीक है। 

मंदिर में देवी छिन्नमस्तिका की प्रतिमा स्थापित है, जो अपने ही कटे सिर को हाथ में पकड़े हुए हैं और रक्त की तीन धाराएँ निकल रही हैं। यह रूप देवी की आत्म त्याग और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। 

सभी तांत्रिक कार्तिक माह की अमावस्या पर करते हैं पूजा 

छिन्नमस्तिका देवी मंदिर तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर साल कार्तिक माह की अमावस्या को रात भर पूजा-अर्चना होती है, जिसमें सभी तांत्रिक विशेष रूप से शामिल होते हैं। साथ ही, उस दिन मंदिर परिसर में 13 हवन कुंडों में यज्ञ और हवन आयोजित किए जाते हैं। 

मंदिर परिसर में स्थित हैं अन्य महत्वपूर्ण मंदिर


छिन्नमस्तिका देवी मंदिर परिसर में महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबा धाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर जैसे अन्य महत्वपूर्ण मंदिर स्थित हैं। साथ ही, यहां गर्म पानी का झरना भी है, जो सर्दियों में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता है। 

छिन्नमस्तिका देवी मंदिर यात्रा गाइड


रजरप्पा स्थित छिन्नमस्तिका देवी मंदिर रामगढ़ से लगभग 28 किलोमीटर दूर है। यहां तक पहुँचने के लिए रामगढ़ कैंट रेलवे स्टेशन से टैक्सी या जीप उपलब्ध हैं। साथ ही, रांची हवाई अड्डा भी लगभग 70 किलोमीटर दूर है। 

मंदिर के दर्शन का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है, जब मौसम सुहावना रहता है। मंदिर में दर्शन के लिए सुबह 5:30 बजे से रात 9:30 बजे तक का समय निर्धारित किया गया है है। 

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गंगा सप्तमी के उपाय

गंगा सप्तमी, जिसे गंगा जयंती या जाह्नवी सप्तमी भी कहा जाता है, इसे हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र पर्व माना जाता है। यह दिन मां गंगा के पुनः प्रकट होने की कथा से जुड़ा हुआ है, जब ऋषि जाह्नु ने मां गंगा को अपने कान से पुनः प्रकट किया था।

गंगा सप्तमी पर 3 शुभ संयोग

हिंदू पंचांग के अनुसार, गंगा सप्तमी का पर्व वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं।

भानु सप्तमी 2025 तिथि-मुहूर्त

भानु सप्तमी एक महत्वपूर्ण दिन है, जो सूर्य देव को समर्पित है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष विधान शास्त्रों में वर्णित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सप्तमी तिथि पर सूर्य देव अवतरित हुए थे। इसलिए इस तिथि पर सूर्य देव की पूजा और व्रत करने का विधान है।

भानु सप्तमी के उपाय

भानु सप्तमी इस साल 4 मई, रविवार को है और इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। सप्तमी तिथि को बड़ा ही शुभ माना जाता है, खासकर जब यह रविवार के दिन पड़ती है। इस दिन मध्याहन के समय सूर्य देव की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।

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