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देवशयनी एकादशी से होगी चातुर्मास की शुरुआत

देवशयनी एकादशी से होगी चातुर्मास की शुरुआत

Devshayani Ekadashi 2025: देवशयनी एकादशी से होगी चातुर्मास की शुरुआत, 118 दिनों तक थमेंगे शुभ कार्य

हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है, जो सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र और विशेष मानी जाती है। 2025 में यह तिथि 6 जुलाई को पड़ रही है, और इसी दिन से चातुर्मास की पावन अवधि की शुरुआत भी हो जाएगी। चातुर्मास यानी चार महीने का वह समय जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और समस्त सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। इस कालखंड में मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है, और साधना, सेवा, व्रत और आत्मचिंतन को विशेष महत्व दिया जाता है।

जानिए क्या है चातुर्मास

संस्कृत में चातुर्मास का अर्थ होता है चार महीने। यह अवधि श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मासों को समाहित करती है। जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, तो इस समय को धार्मिक रूप से तप, ध्यान और संयम का समय माना जाता है। पुराणों के अनुसार, इस दौरान सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी भगवान शिव निभाते हैं, इसलिए इस अवधि में शिव पूजन का विशेष महत्व होता है।

चातुर्मास का धार्मिक महत्व

  • चातुर्मास को आत्मशुद्धि, संयम और साधना का काल माना गया है। भक्त इस दौरान व्रत रखते हैं, ध्यान करते हैं, और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।
  • चार महीनों तक विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे सभी मांगलिक कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं। यह इसलिए किया जाता है क्योंकि भगवान विष्णु, जिनके साक्षी में ये कार्य होते हैं, योगनिद्रा में होते हैं।
  • सृष्टि का भार इस दौरान शिवजी संभालते हैं, इसलिए चातुर्मास में शिव पूजन का विशेष महत्व होता है। श्रावण माह तो संपूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित माना जाता है।

देवशयनी एकादशी और चातुर्मास का संबंध

देवशयनी एकादशी, जिसे ‘हरिशयनी एकादशी’ भी कहा जाता है, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यही दिन चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक होता है। इस दिन से ही भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं और सृष्टि संचालन शिवजी को सौंप देते हैं। 2025 में यह दिन 6 जुलाई को पड़ रहा है, और चातुर्मास की अवधि 6 जुलाई से 1 नवंबर 2025 तक रहेगी।

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फूल भी न माँगती, हार भी न माँगती (Phool Bhi Na Mangti Haar Bhi Na Mangti)

फूल भी न माँगती,
हार भी न माँगती,

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फूल देई, छम्मा देई ।
जतुके दियाला, उतुके सई ॥

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श्री वृन्दावन बिहारी,

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