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हिंदू कैलेंडर में प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती हैं, जो भगवान गणेश को समर्पित हैं। ये दो चतुर्थी हैं:
विनायक चतुर्थी: अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी।
संकष्टी चतुर्थी: पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की तिथि है और इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि प्राप्त होती है। इस दिन भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए व्रत भी रखा जाता है। जो लोग इन दोनों चतुर्थी का व्रत रखकर गणपति बप्पा की पूजा करते हैं उनके सभी कष्ट दूर होते हैं और कार्य बिना विघ्न के पूर्ण होते हैं। नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रती को पूरे दिन का उपवास रखना चाहिए। शाम के समय संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुनना चाहिए। संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं । आईये जानते है मार्गशीर्ष या माघ मास में आने वाली संकष्टी चतुर्थी के महत्व क्या हैं? साथ ही जानेंगे पूजा के शुभ मुहूर्त और विधि के बारे में भी।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी तिथि की शुरूआत 18 नवम्बर की शाम 06:55 बजे से होगी जो 19 नवंबर शाम को 05:28 PM बजे तक रहेगी।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत : सोमवार, नवम्बर 18, 2024
संकष्टी चन्द्रोदय समय - शाम 07:34, 18 नवंबर
नोट: संकष्टी चतुर्थी व्रत का दिन, उस दिन के चन्द्रोदय के आधार पर निर्धारित होता है। जिस दिन चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र उदय होता है, संकष्टी चतुर्थी का व्रत उसी दिन रखा जाता है। इसीलिए प्रायः ऐसा देखा गया है कि, कभी-कभी संकष्टी चतुर्थी व्रत, चतुर्थी तिथि से एक दिन पूर्व अर्थात तृतीया तिथि के दिन ही होता है।
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