गणाधिप संकष्टी चतुर्थी, पूजा विधि

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2024: मार्गशीर्ष मास में आज मनाई जाएगी संकष्टी चतुर्थी? जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि 


हिंदू कैलेंडर में प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती हैं, जो भगवान गणेश को समर्पित हैं। ये दो चतुर्थी हैं:


विनायक चतुर्थी: अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी।

संकष्टी चतुर्थी: पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी।


हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की तिथि है और इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि प्राप्त होती है। इस दिन भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए व्रत भी रखा जाता है। जो लोग इन दोनों चतुर्थी का व्रत रखकर गणपति बप्पा की पूजा करते हैं उनके सभी कष्ट दूर होते हैं और कार्य बिना विघ्न के पूर्ण होते हैं। नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रती को पूरे दिन का उपवास रखना चाहिए। शाम के समय संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुनना चाहिए। संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं । आईये जानते है मार्गशीर्ष या माघ मास में आने वाली संकष्टी चतुर्थी के महत्व क्या हैं? साथ ही जानेंगे पूजा के शुभ मुहूर्त और विधि के बारे में भी। 


गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2024 पूजा शुभ मुहूर्त  


गणाधिप संकष्टी चतुर्थी तिथि की शुरूआत 18 नवम्बर की शाम 06:55 बजे से होगी जो 19 नवंबर शाम को 05:28 PM बजे तक रहेगी। 


गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत : सोमवार, नवम्बर 18, 2024

संकष्टी चन्द्रोदय समय - शाम 07:34, 18 नवंबर 


गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि


  • गणेश संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रात: काल स्नान आदि करके व्रत लें।
  • स्नान के बाद गणेश जी की पूज आराधना करें, गणेश जी के मन्त्र का उच्चारण करें।
  • पूजा की तैयारी करें और गणेश जी को उनकी पसंदीदा चीजें जैसे मोदक, लड्डू और दूर्वा घास चढ़ाएं।
  • गणेश मंत्रों का जाप करें और श्री गणेश चालीसा का पाठ कर भगवान की आरती करें।
  • गणेश चतुर्थी की पूजा शाम को चंद्रोदय के बाद की जाती है, अगर बादल के चलते चन्द्रमा नहीं दिखाई देता है तो, पंचांग के हिसाब से चंद्रोदय के समय में पूजा कर लें।
  • शाम की पूजा के लिए गणेश जी की मूर्ति के बाजू में दुर्गा जी की भी तस्वीर या मूर्ति भी रखें, इस दिन दुर्गा जी की पूजा बहुत जरुरी मानी जाती है।
  • इसके बाद धूप, दीप, अगरबत्ती लगाएँ और फूल अर्पित कर प्रसादी में केला और नारियल रखें।
  • गणेश जी के प्रिय मोदक बनाकर अर्पित करें, इस दिन तिल या गुड़ के मोदक बनाये जाते है।
  • गणेश जी के मन्त्र का जाप करते हुए कुछ देर तक ध्यान करें और संकष्टी चतुर्थी की कथा सुने, आरती करें और प्रार्थना करें।
  • इसके बाद चन्द्रमा की पूजा कर उन्हें जल अर्पण कर फूल, चन्दन, चावल चढ़ाएं।
  • पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद सबको वितरित किया जाता है।
  • गरीबों को दान भी किया जाता है।


संकष्टी चतुर्थी व्रत के लाभ 


  • नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रती को पूरे दिन का उपवास रखना चाहिए। 
  • शाम के समय संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुननी चाहिए। संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं । 
  • इतना ही नहीं संकष्टी चतुर्थी की पूजा से घर में शांति बनी रहती है। घर की सारी परेशानियां दूर होती हैं। 
  • गणेश जी भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस दिन चंद्रमा को देखना भी शुभ माना जाता है। 
  • सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है, साल भर में 12-13 संकष्टी व्रत रखे जाते हैं। हर संकष्टी व्रत की एक अलग कहानी होती है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में संकष्टी चतुर्थी को गणेश संकटहरा या संकटहरा चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।


नोट: संकष्टी चतुर्थी व्रत का दिन, उस दिन के चन्द्रोदय के आधार पर निर्धारित होता है। जिस दिन चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र उदय होता है, संकष्टी चतुर्थी का व्रत उसी दिन रखा जाता है। इसीलिए प्रायः ऐसा देखा गया है कि, कभी-कभी संकष्टी चतुर्थी व्रत, चतुर्थी तिथि से एक दिन पूर्व अर्थात तृतीया तिथि के दिन ही होता है।


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