Logo

मेरे सिर पर रख दो भोले(Mere Sar Par Rakh Do Bhole)

मेरे सिर पर रख दो भोले(Mere Sar Par Rakh Do Bhole)

मेरे सिर पर रख दो भोले,

अपने ये दोनों हाथ,

देना हो तो दीजिए,

जनम जनम का साथ ॥


देने वाले श्याम शिवदानी तो,

अन्न धन दौलत क्या मांगे,

महादेव से मांगे तो फिर,

नाम और इज्ज़त क्या मांगे,

मेरे जीवन में तू कर दे,

मेरे जीवन में तू कर दे,

अब कृपा की बरसात,

देना हो तो दीजिए,

जनम जनम का साथ ॥


भोले तेरे चरणों की धूलि,

धन दौलत से महंगी है,

एक नज़र कृपा की बाबा,

नाम इज्ज़त से महंगी है,

मेरे दिल की तम्मना यही है,

मेरे दिल की तम्मना यही है,

करूँ सेवा तेरी दिन रात,

देना हो तो दीजिए,

जनम जनम का साथ ॥


झुलस रहें है गम की धुप में,

प्यार की छाया कर दे तू

बिन माझी के नाव चले ना,

अब पतवार पकड़ ले तू,

मेरा रस्ता रौशन कर दे,

मेरा रस्ता रौशन कर दे,

छायी अंधियारी रात,

देना हो तो दीजिए,

जनम जनम का साथ ॥


कहती है दुनिया शरणागत को,

अपने गले लगाते हो,

ऐसा हमने क्या माँगा जो,

देने में घबराते हो,

चाहे जैसे रखो त्रिपुरारी,

चाहे जैसे रखो त्रिपुरारी,

बस होती रहे मुलाक़ात,

देना हो तो दीजिए,

जनम जनम का साथ ॥


मेरे सिर पर रख दो भोले,

अपने ये दोनों हाथ,

देना हो तो दीजिए,

जनम जनम का साथ ॥

........................................................................................................
नागा भभूत क्यों लगाते हैं?

नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत लगाते हैं। ये हमेशा नग्न अवस्था में ही नजर आते हैं। चाहे कोई भी मौसम हो, उनके शरीर पर वस्त्र नहीं होते। वे शरीर पर भस्म लपेटकर घूमते हैं। नागाओं में भी दिगंबर साधु ही शरीर पर भभूत लगाते हैं। यह भभूत ही उनका वस्त्र और श्रृंगार होता है। यह भभूत उन्हें बहुत सारी आपदाओं से बचाता भी है।

नागा साधु किसकी पूजा करते हैं?

नागा साधु भारत की प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे केवल सनातन धर्म के संरक्षक भी माने जाते हैं। इनका जीवन कठोर तपस्चर्या, शैव परंपराओं और भगवान शिव की भक्ति में बीतता है। नागा साधु धार्मिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ होते हैं। साथ ही हिंदू धर्म की रक्षा में भी ऐतिहासिक योगदान भी देते हैं।

अखाड़ों के नगर प्रवेश की प्रक्रिया क्या है

महाकुंभ को हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान कहा गया है। अखाड़े इस धार्मिक अनुष्ठान की रौनक है, जो इसकी शोभा बढ़ाते हैं। इनका नगर प्रवेश हमेशा से एक चर्चा का विषय होता है।

आचमन क्यों करते हैं?

पूजा-पाठ से लेकर विशेष अनुष्ठान एवं हवन इत्यादि सभी तरह की पूजा में आचमन आवश्यक है। आचमन का शाब्दिक अर्थ है ‘मंत्रोच्चारण के साथ जल को ग्रहण करते हुए शरीर, मन और हृदय को शुद्ध करना।’ शास्त्रों में आचमन की विभिन्न विधियों के बारे में बताया गया है। आचमन किए बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang