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मां कूष्मांडा की पूजा विधि और कथा

मां कूष्मांडा की पूजा विधि और कथा

Ashadha Gupt Navratri Day 4: आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन करें मां कूष्मांडा की पूजा, जानिए सम्पूर्ण विधि और पौराणिक कथा

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का चौथा दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की उपासना को समर्पित होता है। मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की रचयिता माना गया है। 'कूष्मांड' शब्द का अर्थ है, ‘कु’ यानी थोड़ा, ‘उष्म’ यानी ऊर्जा और ‘अंड’ यानी ब्रह्मांड। इस प्रकार, यह देवी अपने सूक्ष्म हास्य से संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली मानी जाती हैं। इनकी पूजा साधक को जीवन की जटिलताओं से उबारती है और रोग, शोक व कष्टों का नाश करती है।

मां कूष्मांडा को अर्पित करें मालपुआ

गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।

मां कूष्मांडा को कुमकुम, हल्दी, लाल फूल अर्पित करें और नैवेद्य चढ़ाएं। 

मां कूष्मांडा को मालपुआ, फल और मिठाई का भोग लगाएं। मालपुआ विशेष रूप से मां को प्रिय है और इस दिन इसे अर्पित करना अति शुभ माना जाता है।

ॐ कूष्माण्डायै नमः’, ‘या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः॥’ इन मंत्रों का 108 बार मंत्र जाप करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।

मां कूष्मांडा की आरती करें और पूजा के अंत में किसी त्रुटि के लिए क्षमा याचना करें।

मां कूष्मांडा की कथा

जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, और चारों ओर घना अंधकार छाया हुआ था, तब मां कूष्मांडा ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की। उनके इसी चमत्कारी रूप के कारण उन्हें ब्रह्मांड सृजनकर्ता देवी कहा जाता है। उन्होंने अपने तेज से न केवल सृष्टि की उत्पत्ति की, बल्कि उसमें ऊर्जा और प्रकाश का संचार भी किया।

उनका निवास स्थान सूर्य मंडल बताया गया है, जहां कोई भी साधारण शक्ति नहीं टिक सकती, परंतु मां कूष्मांडा वहां निवास करती हैं और समस्त त्रैलोक्य को नियंत्रित करती हैं। यह कथा दर्शाती है कि मां की आराधना से जीवन में सकारात्मकता, ऊर्जा और नवीन आरंभ संभव होता है।

मां की उपासना से प्रप्त होती है सुख-समृद्धि और यश

मां कूष्मांडा की पूजा से भक्तों को अद्भुत आत्मबल और रोगमुक्ति प्राप्त होती है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, उनकी कृपा से साधक के जीवन से भय, दुःख और मानसिक क्लेश दूर होते हैं। यह भी मान्यता है कि मां की उपासना से सुख-समृद्धि, यश और आत्मिक तेज की भी प्राप्ति होती है।

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माँ दुर्गे आशीष दो (Maa Durge Ashish Do)

माँ दुर्गे आशीष दो माँ दुर्गे आशीष दो
मन मे मेरे वास हो तेरा चरणो संग प्रीत हो ॥

माँ गौरी के लाल गजानन(Maa Gauri Ke Lal Gajanan)

माँ गौरी के लाल गजानन,
आज आओ पधारो मेरे आँगन,

काशी वाले, देवघर वाले, जय शम्भू (Bhajan: Kashi Wale Devghar Wale Jai Shambu)

काशी वाले देवघर वाले, भोले डमरू धारी।
खेल तेरे हैं निराले, शिव शंकर त्रिपुरारी।

मात अंग चोला साजे (Maat Ang Chola Saje Har Rang Chola Saje)

हे माँ, हे माँ, हे माँ, हे माँ

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