हिंदू पंचांग में प्रत्येक अमावस्या तिथि को विशेष धार्मिक महत्त्व प्राप्त है, लेकिन दर्श अमावस्या का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण एवं विशेष माना जाता है। यह दिन विशेष रूप से पितृ तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मों के लिए समर्पित होता है। दर्श अमावस्या का संबंध पूर्वजों की आत्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति से जोड़ा जाता है। इस वर्ष यह 25 जून को मनाया जाएगा।
तर्पण के बाद कौवों को भोजन कराना विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि कौवे को पितरों का प्रतीक माना जाता है। यह माना जाता है कि जब कौवा भोजन ग्रहण करता है तो वह भोजन पितरों तक पहुंचता है।
इसके बाद ब्राह्मणों या ज़रूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करना अत्यंत पुण्यकारी होता है।
पिंडदान, तर्पण से एक कदम आगे का कर्म है, जिसे अत्यंत श्रद्धा से संपन्न करना चाहिए। इसके लिए आवश्यक सामग्री में शामिल हैं: जौ, काले तिल, चावल और घी।
इन सामग्रियों से पिंड बनाए जाते हैं। आमतौर पर तीन पिंड बनाए जाते हैं – पिता, पितामह और प्रपितामह के नाम पर। पिंड बनाते समय पितरों के नामों का उच्चारण करते हुए उन्हें समर्पित करें। साथ ही, पितृ सूक्त या अन्य पितृ मंत्रों का जाप करें। पिंडदान के दौरान जल का छिड़काव और मंत्रोच्चारण करते हुए पिंड अर्पण किए जाते हैं।
राम सीता और लखन वन जा रहे,
हाय अयोध्या में अँधेरे छा रहे,
कल्पतरु पुन्यातामा,
प्रेम सुधा शिव नाम
शिव भोला भंडारी,
सुख का त्योहार,
शिव भोले भंडारी,
बम भोले औघड़दानी,