Week Vrat Tyohar 08 To 14 July: जुलाई के दूसरे हफ्ते में पड़ेंगे ये व्रत-त्योहार, देखें लिस्ट
अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से जुलाई साल का सातवां महीना होता है। जुलाई का दूसरा हफ्ता विभिन्न त्योहारों और उत्सवों से भरा हुआ है। इस हफ्ते में कई महत्वपूर्ण त्योहार पड़ेंगे। जिनमें भौम प्रदोष व्रत, सावन का पहला सोमवार, गजानन संकष्टी चतुर्थी और अन्य शामिल हैं। ये त्योहार न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं, बल्कि हमार जीवन को अध्यात्मिक और धार्मिक मूल्यों से भी भर सकते हैं। आइए इस आर्टिकल में जुलाई के दूसरे हफ्ते में पड़ने वाले इन महत्वपूर्ण त्योहारों के बारे में जानते हैं और उनके धार्मिक महत्व को समझते हैं।
8 से 14 मई 2025 के व्रत-त्यौहार
- 8 जुलाई 2025- जयापार्वती व्रत प्रारम्भ, भौम प्रदोष व्रत
- 9 जुलाई 2025- कोई व्रत या त्यौहार नहीं है।
- 10 जुलाई 2025- कोकिला व्रत, गुरु पूर्णिमा, व्यास पूजा, गौरी व्रत समाप्त, आषाढ़ पूर्णिमा व्रत
- 11 जुलाई 2025- श्रावण मास प्रारंभ, पार्थिव शिव पूजन
- 12 जुलाई 2025- कोई व्रत या त्यौहार नहीं है।
- 13 जुलाई 2025- जयापार्वती व्रत समाप्त
- 14 जुलाई 2025- प्रथम श्रावण सोमवार व्रत, गजानन संकष्टी चतुर्थी
8 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहार
8 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है:
- मंगलवार का व्रत - आज आप गुरूवार का व्रत रख सकते हैं, जो हनुमान जी को समर्पित है।
- जयापार्वती व्रत प्रारम्भ - जयापार्वती व्रत देवी जया को समर्पित एक महत्वपूर्ण उपवास है, जो मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है। अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए साथ ही विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। यह व्रत आषाढ़ मास में पांच दिनों तक चलता है, जो शुक्ल पक्ष त्रयोदशी से शुरू होकर कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर समाप्त होता है। व्रत के दौरान भक्त नमकीन भोजन और अनाज से बचते हैं साथ ही ज्वार या गेहूं के दानों को बोने और उनकी पूजा करने का अनुष्ठान करते हैं। अंतिम दिन रात्रि जागरण किया जाता है और अगले दिन प्रातःकाल में गेहूं या ज्वार की घास को पवित्र जल में प्रवाहित किया जाता है। इसके बाद नमक, सब्जियों और गेहूं से बनी रोटियों के भोजन से उपवास तोड़ा जाता है।
- भौम प्रदोष व्रत - प्रदोष व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता है, जिसमें से एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष में होता है। यह व्रत तब किया जाता है जब त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है, जो सूर्यास्त से प्रारंभ होता है। जब त्रयोदशी और प्रदोष साथ-साथ होते हैं, तो यह शिव पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। भौम प्रदोष, जो मंगलवार को पड़ता है, इस व्रत का एक विशेष रूप है जो ऋण से मुक्ति, भूमि-भवन विवादों के निवारण और शारीरिक बल की वृद्धि के लिए किया जाता है। भौम प्रदोष का व्रत करने से भगवान शिव और मंगल देव की कृपा से साहस, आत्मबल और निर्भयता प्राप्त होती है। साथ ही यह आर्थिक बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता है और शारीरिक व्याधियों को नष्ट करता है।
9 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहार
9 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है:
- बुधवार का व्रत - आज आप बुधवार का व्रत रख सकते हैं, जो भगवान गणेश को समर्पित है।
10 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहार
10 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है:
- गुरूवार का व्रत - आज आप गुरूवार का व्रत रख सकते हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित है।
- कोकिला व्रत- कोकिला व्रत आषाढ़ चन्द्रमास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो देवी सती और भगवान शिव को समर्पित है। इस व्रत की मान्यता विशेष रूप से उन वर्षों में है जिनमें आषाढ़ का अधिक मास होता है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह व्रत प्रति वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा को मनाया जाता है। कोकिला व्रत के दौरान, स्त्रियां प्रातः स्नान करके मिट्टी से कोयल की मूर्ति बनाती हैं और उसकी पूजा-अर्चना करती हैं। इस व्रत का पालन करने वाली स्त्रियां अखण्ड सौभाग्यवती होती हैं और उन्हें अपने पति से पूर्व ही परलोक गमन होता है। कोकिला व्रत से पत्नी से प्रेम करने वाले और उनका ध्यान रखने वाले पति की प्राप्ति होती है। यह व्रत मुख्य रूप से स्त्रियों द्वारा किया जाता है। साथ ही कुछ क्षेत्रों में यह व्रत आषाढ़ पूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा तक एक माह की अवधि के लिए किया जाता है।
- गुरू पूर्णिमा- आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जो गुरुओं की पूजा-अर्चना के लिए निर्धारित है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान एवं शिक्षा के लिए उनका आभार व्यक्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, जो महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की थी। इसके अलावा, बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा भी गुरु पूर्णिमा को गौतम बुद्ध के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने इसी दिन सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश दिया था। इस प्रकार गुरु पूर्णिमा गुरुओं के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
- व्यास पूजा- आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को व्यास पूजा दिवस या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जो गुरु पूजन के लिए निर्धारित है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा-अर्चना करते हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान और शिक्षा के माध्यम से उनका मार्गदर्शन करते हैं। व्यास पूर्णिमा महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास की जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की और इसमें एक महत्वपूर्ण पात्र भी थे। इस दिन गुरुओं के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
- गौरी व्रत समाप्त - गौरी व्रत देवी पार्वती को समर्पित एक महत्वपूर्ण उपवास है, जो मुख्यतः गुजरात में पालन किया जाता है। अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। गौरी व्रत आषाढ़ माह में पांच दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत शुक्ल पक्ष की एकादशी से होती है और पूर्णिमा के दिन यानी गुरु पूर्णिमा को इसका समापन होता है। इस व्रत को मोरकट व्रत के नाम से भी जाना जाता है और इसका पालन करने से देवी पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- आषाढ़ पूर्णिमा व्रत- हिन्दु धर्म में पूर्णिमा व्रत को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है, जो प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। बत्तीसी पूर्णिमा व्रत, जो द्वात्रिंशी पूर्णिमा व्रत भी कहलाता है, मार्गशीर्ष से भाद्रपद और पौष माह की पूर्णिमा तक किया जाता है। इस व्रत से समस्त प्रकार के सुख-सौभाग्य और पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा तिथि भगवान विष्णु के पूजन के लिए भी महत्वपूर्ण है और इस दिन चन्द्रदेव अपने सम्पूर्ण रूप में प्रकाशित होते हैं, जिससे चन्द्रोपासना का विशेष लाभ होता है। धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित इस व्रत को पापों के क्षय, पुण्य वृद्धि और मानसिक शुद्धि के लिए अत्यन्त फलदायी बताया गया है।
11 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहार
11 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है:
शुक्रवार का व्रत - आज आप शुक्रवार का व्रत रख सकते हैं, जो माता लक्ष्मी को समर्पित है।
श्रावण मास प्रारंभ- हिन्दु कैलेण्डर में श्रावण मास एक शुभ महीना है, जो भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। श्रावण मास की गणना को लेकर विवाद है, जिसमें पूर्णिमान्त और अमान्त चक्र का पालन किया जाता है। उत्तर भारत में पूर्णिमान्त चक्र का पालन किया जाता है, लेकिन धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अमान्त चक्र अधिक उपयुक्त माना जाता है। अमान्त चक्र में चन्द्र वर्ष मीन संक्रान्ति के बाद और मेष संक्रान्ति से पहले प्रारंभ होता है, जो इसे अधिक तर्कसंगत बनाता है। ज्योतिषीय रूप से भी अधिकांश पुस्तकें अमान्त चक्र को मानती हैं। श्रावण मास के दौरान प्रत्येक तिथि को उपवास और पूजा अनुष्ठान करना शुभ माना जाता है, और इस मास में प्रत्येक चन्द्र दिवस को कुछ न कुछ व्रत और पूजा के लिए चिह्नित किया गया है।
12 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहार
12 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है:
- शनिवार का व्रत - आज आप शनिवार का व्रत रख सकते हैं, जो न्याय के देवता भगवान शनि को समर्पित है।
13 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहार
13 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है:
- रविवार का व्रत - आज आप रविवार का व्रत रख सकते हैं, जो सूर्य देव को समर्पित है।
- जयापार्वती व्रत समाप्त - जयापार्वती व्रत देवी जया को समर्पित एक महत्वपूर्ण उपवास है, जो मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है। अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए साथ ही विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। यह व्रत आषाढ़ मास में पांच दिनों तक चलता है, जो शुक्ल पक्ष त्रयोदशी से शुरू होकर कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर समाप्त होता है। व्रत के दौरान भक्त नमकीन भोजन और अनाज से बचते हैं साथ ही ज्वार या गेहूं के दानों को बोने और उनकी पूजा करने का अनुष्ठान करते हैं। अंतिम दिन रात्रि जागरण किया जाता है और अगले दिन प्रातःकाल में गेहूं या ज्वार की घास को पवित्र जल में प्रवाहित किया जाता है। इसके बाद नमक, सब्जियों और गेहूं से बनी रोटियों के भोजन से उपवास तोड़ा जाता है।
14 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहार
14 जुलाई 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है:
- सोमवार का व्रत - आज आप सोमवार का व्रत रख सकते हैं, जो भगवान शिव को समर्पित है।
- प्रथम श्रावण सोमवार व्रत- श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित एक शुभ महीना है, जिसमें भक्त विभिन्न व्रत रखते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद लेने का प्रयास करते हैं। इस मास में पड़ने वाले सोमवार विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं और श्रावण सोमवार व्रत के रूप में जाने जाते हैं। कई भक्त सोलह सोमवार का उपवास भी करते हैं। इसके अलावा, श्रावण मास के मंगलवार मंगला गौरी व्रत के रूप में मनाए जाते हैं, जो देवी पार्वती को समर्पित हैं। श्रावण मास में सावन शिवरात्रि और हरियाली अमावस्या जैसे अन्य शुभ दिन भी होते हैं। श्रावण मास की शुरुआत के समय में क्षेत्रों के आधार पर पन्द्रह दिनों का अन्तर हो सकता है, जो पूर्णिमान्त और अमान्त चन्द्र कैलेण्डर के पालन के कारण होता है। उत्तर भारत में पूर्णिमान्त कैलेण्डर का पालन किया जाता है, जबकि दक्षिण और पश्चिम भारत में अमान्त कैलेण्डर का पालन किया जाता है, जिससे सावन सोमवार की तारीखें अलग-अलग हो सकती हैं।
- गजानन संकष्टी चतुर्थी- अमान्त हिन्दु पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गजानन संकष्टी के रूप में मनाया जाता है, जिसमें भगवान गणेश के गजानन स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। गजानन भगवान गणेश के अष्टविनायक स्वरूपों में से एक हैं, जिसका अर्थ है हाथी के मुख वाले। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है और व्यक्ति महान शासकों के साथ पदाधिकारियों को भी वशीभूत कर सकता है। भगवान गजानन के प्राकट्य की कथा के अनुसार, उन्होंने लोभासुर नामक दैत्य को परास्त कर पृथ्वीलोक को उसकी प्रताड़नाओं से मुक्त किया था। इस पावन अवसर पर भगवान गजानन की पूजा से भक्तों को विशेष लाभ होता है।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है। यह संस्कार पुरुषों में जनेऊ धारण करने की पारंपरिक प्रथा को दर्शाता है, जो सदियों से चली आ रही है।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है। यह संस्कार पुरुषों में जनेऊ धारण करने की पारंपरिक प्रथा को दर्शाता है, जो सदियों से चली आ रही है।
हिंदू धर्म में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता है जो दो लोगों के साथ-साथ दो परिवारों को भी जोड़ता है। वैदिक शास्त्रों में कहा गया है कि शादी एक पवित्र रिश्ता है और इसे हमेशा शुभ समय पर किया जाना चाहिए। विवाह के लिए शुभ समय और तारीख का निर्धारण करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।
साल 2025 में अपने नन्हे मेहमान के आगमन के साथ आप उनके नामकरण संस्कार की तैयारी में जुट गए होंगे। यह एक ऐसा पल है जो न केवल आपके परिवार के लिए बल्कि आपके बच्चे के भविष्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।