कूर्म जयंती, भगवान विष्णु के दूसरे अवतार कूर्म ‘कछुए’ के रूप में प्रकट होने की तिथि है। इस साल कूर्म जयंती 12 मई, सोमवार को मनाई जाएगी। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कूर्म जयंती पूजा का शुभ मुहूर्त 12 मई, सोमवार को शाम 4:21 बजे से लेकर 7:03 बजे तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, इस अवधि में पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
कूर्म जयंती की कथा के अनुसार, ऋषि दुर्वासा ने देवराज इन्द्र को पारिजात पुष्प की माला भेंट की, जिसे देव इन्द्र ने अहंकार में अपने हाथी एरावत को पहनने के लिए दे दिया। हाथी ने माला को जमीन पर फेंक दिया, जिससे ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए और देवताओं को श्राप दे दिया कि वे लक्ष्मी से वंचित हो जाएंगे। देवताओं ने भगवान शिव के पास जाकर उपाय पूछा, तब भगवान शिव ने उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने की सलाह दी। भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार लेकर समुद्र मंथन में देवताओं की सहायता की और मंदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठाकर स्थिर किया, जिससे समुद्र मंथन सफल हुआ और देवताओं को अमृत प्राप्त हुआ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कूर्म जयंती के दिन की पूजा से भक्तों को सुख, समृद्धि और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही, ऐसा कहा जाता है कि इस दिन की पूजा से देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और भक्तों के घर में निवास करती हैं।
अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से अप्रैल साल का चौथा महीना होता है। अप्रैल का चौथा हफ्ता विभिन्न त्योहारों और उत्सवों से भरा हुआ है। इस हफ्ते में कई महत्वपूर्ण त्योहार पड़ेंगे।
भारत देश के झारखंड राज्य के गुमला जिले में स्थित टांगीनाथ धाम, भगवान परशुराम के शक्तिशाली फरसे के रहस्य के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान रांची से लगभग 150 किलोमीटर दूर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जिसे धार्मिक आस्था और विश्वास का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।
सनातन धर्म में भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है, जिनका जन्म त्रेता युग में हुआ था और उनका उद्देश्य धरती पर धर्म की स्थापना और अधर्मियों का विनाश करना था।
सनातन धर्म में प्रत्येक दिन किसी-न-किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक दिन अलग-अलग देवी-देवताओं की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है।