रंग पंचमी भारत का एक प्रमुख रंगीन त्योहार है, जो होली के पांच दिन बाद मनाया जाता है। इसे भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की होली से जोड़कर देखा जाता है। इस दिन रंगों और गुलाल को उड़ाने की परंपरा है, जिसे वातावरण की शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के संचार के लिए शुभ माना जाता है। 2025 में यह पर्व 19 मार्च, बुधवार को मनाया जाएगा।
1. भगवान कृष्ण और राधा की होली
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ होली खेली थी। देवताओं ने इस अवसर पर आकाश से फूलों की वर्षा की थी, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
2. गुलाल उड़ाने की परंपरा
रंग पंचमी पर गुलाल उड़ाने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं। यह त्योहार जीवन में उत्साह और ऊर्जा का संचार करता है।
3. नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति
मान्यता है कि इस दिन किए गए पूजन और उपायों से घर में शांति और समृद्धि आती है। वातावरण में फैली सभी नकारात्मक शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं।
1. पूजन और धार्मिक अनुष्ठान
2. विशेष जुलूस और शोभायात्रा
3. शुभ दान और उपाय
रंग पंचमी केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत संगम है। इसे पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाएं और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करें।
अमावस्या का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। यह दिन पितरों को समर्पित है और माना जाता है कि इस दिन किए गए पूजा-पाठ और दान का विशेष फल मिलता है। यह वह दिन होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चंद्रमा दिखाई नहीं देता। इस दिन किए गए पूजा-पाठ और दान का विशेष फल मिलता है।
भगवान शिव, देवों के देव महादेव, को प्रसन्न करना सबसे सरल माना जाता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि भोलेनाथ की कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है। हर व्यक्ति शिव शंभू की कृपा पाने को आतुर रहता है।
नए साल 2025 की शुरुआत होने वाली है और हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है और इस दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही एकादशी का व्रत रखा जाता है जो साधक की हर मनोकामना पूरी करने और पृथ्वी लोक पर स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति करने में मदद करता है।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है। यह संस्कार पुरुषों में जनेऊ धारण करने की पारंपरिक प्रथा को दर्शाता है, जो सदियों से चली आ रही है।