हिंदू धर्म में सभी एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। हर महीने में दो एकादशी की तिथियां आती हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं और वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिवत रूप से पूजा और व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है, और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
इस वर्ष वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 अप्रैल, बुधवार शाम 4:43 बजे से शुरू होगी और 24 अप्रैल, गुरुवार दोपहर 2:32 बजे समाप्त होगी। इसलिए हिन्दू पंचांग के सूर्योदय तिथि के अनुसार एकादशी व्रत 24 अप्रैल, गुरुवार को किया जाएगा। साथ ही, पारण का सुभ समय 25 अप्रैल, शुक्रवार सुबह 6:14 बजे से 8:47 बजे तक रहेगा।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वरुथिनी एकादशी के व्रत से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही, यह व्रत विशेष रूप से पापों के नाश के लिए किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को वरुथिनी एकादशी का महत्व बताते हुए कहा था कि यह व्रत राजाओं, योद्धाओं और गृहस्थों के लिए विशेष लाभदायक होगा। इससे जीवन के पाप भी नष्ट होंगे और सौभाग्य की प्राप्ति भी होगी।
हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि का विशेष महत्व है। यह दोनों तिथियां भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है और जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
साल 2025 में कुल 2 चंद्र ग्रहण लगेंगे। लेकिन यह दोनों ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देंगे इसलिए इसका कोई धार्मिक प्रभाव नहीं माना जाएगा। साथ ही इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।
बच्चे के जन्म के बाद हिंदू परंपरा में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक भी है।
नए साल 2025 की शुरूआत होने जा रही है। इस नए साल के साथ हमारी उत्सुकता भी बढ़ जाती है कि इस साल कौन-कौन सी महत्वपूर्ण घटनाएं होने वाली हैं। इन्हीं घटनाओं में से एक है सूर्य ग्रहण, जो धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।