महाकुंभ मेले की भव्यता की बातें चारों ओर हो रही हैं। कड़ाके की ठंड होने के बावजूद लाखों की संख्या में लोग गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान कर रहे हैं। मान्यता है कि कुंभ में नदी स्नान से मनुष्यों के सारे पाप धुल जाते हैं। नदी स्नान के बाद नदी के जल से सूर्य और शिवलिंग को जल अर्पित करना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति असहाय है या बीमार है या अन्य किसी कारणवश महाकुंभ स्नान में शामिल नहीं हो सकता है तो उसे कुछ उपाय अपनाने चाहिए। जिससे जातक को तीर्थ जैसा ही फल प्राप्त होगा।
महाकुंभ में ब्रह्म मुहूर्त के स्नान को बेहद शुभ माना जाता है। इस दौरान भगवान शिव, विष्णु का ध्यान व पूजन करना चाहिए। बता दें कि माघ मास की इस ठंड में ठंडे पानी से स्नान करने को भी एक तरह का तप माना गया है।
गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर महाकुंभ का आयोजन हुआ है। 11 पूर्ण कुंभ होने के बाद इस बार लगने वाला 12वां पूर्ण कुंभ महाकुंभ है, क्योंकि यह 144 साल में एक बार लगता है। प्रत्येक कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार अलग-अलग स्थानों पर लगता है और महाकुंभ 144 साल में एक बार आयोजित होता है। मान्यताओं के अनुसार, देवताओं के 12 दिन इंसानों के लिए 12 वर्ष के समान होते हैं। महाकुंभ धार्मिक आस्था के साथ ही शांति, एकता और भक्ति का संदेश भी देता है। पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंभ में स्नान करने से व्यक्ति द्वारा किए गए सभी पाप धुल जाते हैं। नियमानुसार यदि स्नान करें तो जीवन में खुशहाली और सुख-समृद्धि आती है।
13 जनवरी को पौष पूर्णिमा और 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन अमृत स्नान पड़ा था। इसके बाद 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर शाही यानी अमृत स्नान किया जाएगा। फिर सभी तीर्थयात्रियों को त्रिवेणी संगम में स्नान करके खुद को शुद्ध करने का अवसर 3 फरवरी यानी वसंत पंचमी और इसके बाद 12 फरवरी यानी माघी पूर्णिमा और 26 फरवरी महाशिवरात्रि के पावन दिन अमृत स्नान करने का शुभ अवसर प्राप्त होगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार 15 दिसंबर को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाएगी। यह पर्व हर वर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा और भगवान शिव की पूजा होती है।
माता अन्नपूर्णा अन्न की देवी मानी जाती हैं। इस कारण इस दिन भूल से भी किसी तरह के अन्न का अनादर नहीं करना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र में मंगलदेव को युद्ध का देवता कहा जाता है। इनकी पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को ऊर्जा और साहस मिलती है। वहीं अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल उच्च स्थिति मे होते हैं, तो उन्हें मांगलिक कहा जाता है।
सनातन धर्म में माता अन्नपूर्णा को अन्न की देवी माना गया है। इसलिए, हर साल मार्गशीर्ष माह में अन्नपूर्णा जयंती मनायी जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता पार्वती धरती पर मां अन्नपूर्णा के रूप में अवतरित हुई थीं।