मैं तो संग जाऊं बनवास
मैं तो संग जाऊं बनवास
मैं तो संग जाऊं बनवास
स्वामी ना करना निराश
पग पग संग जाऊं जाऊं बनवास
हे मैं तो संग जाऊं बनवास
उपर है अग्नि की छतरी नीचे तपती बाली
उपर है अग्नि की छतरी नीचे तपती बाली
पाँव में पड़ेंगें छाले ना जाओ बनवास
हे मैं तो संग जाऊं बनवास
मैं तो संग जाऊं बनवास
तुम हो सूर्यवंशी स्वामी रखो अपनी छाया
तुम हो सूर्यवंशी स्वामी रखो अपनी छाया
छाव में चलूँ तुम्हारी तुम ही मेरी माया
मैं तो संग जाऊं बनवास
मैं तो संग जाऊं बनवास
जंगल बन मे घूमे हाथी भालू शेर और हिरना
जंगल बन मे घूमे हाथी भालू शेर और हिरना
नारी हो तुम डर जाओगी
ना जाओ बनवास
हे मैं तो संग जाऊं बनवास
मैं तो संग जाऊं बनवास
तुम तो योद्धावीर हो स्वामी तुम ही रक्षा करना
तुम तो योद्धावीर हो स्वामी तुम ही रक्षा करना
बाण तुम्हारे काँधे सोहे संग हो तो क्या डरना
मैं तो संग जाऊं बनवास
स्वामी ना करना निराश
पग पग संग जाऊं जाऊं बनवास
हे मैं तो संग जाऊं बनवास
मैं तो संग जाऊं बनवास
मैं तो संग जाऊं बनवास
हिंदू धर्म में पूरे साल में आने वाली सभी 24 एकादशियों में से प्रत्येक को विशेष माना जाता है। उन्हीं में से एक षटतिला एकादशी है। माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ही षटतिला एकादशी कहते हैं।
हिंदू धर्म में, यूं तो प्रत्येक एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। पर षटतिला एकादशी उन सब में भी विशेष मानी जाती है। 2025 में, षटतिला एकादशी का व्रत 25 जनवरी को है। इस दिन पूजा और व्रत करने से साधक को मोक्ष प्राप्त होती है।
सनातन धर्म में एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। पंचांग के अनुसार, माघ महीने की एकादशी तिथि को ही षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की पूजा-व्रत करने से का विधान है।
षटतिला एकादशी माघ महीने में पड़ती है और इस साल यह तिथि 25 जनवरी को है। षटतिला का अर्थ ही छह तिल होता है। इसलिए, इस एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है।