गौरा माता दी अख दा तारा,
शिव शंकर दा राजदुलारा,
मनाओ जी गणेश भक्तो,
मनाओ जी गणेश भक्तों ॥
मत्थे चन्दन तिलक सुहावे,
गल पुष्पा दी माला पावे,
चढ़े पान फूल संग मेवा,
करे संतन रल मिल सेवा,
मनाओ जी गणेश भक्तों,
मनाओ जी गणेश भक्तों ॥
सब तो पेहला होंदी पूजा,
गणपति वरगा देव ना दूजा,
काम बिगड़े ऐ सबदे बणोंदा,
झोली जग सारे आदे भरोंदा,
मनाओ जी गणेश भक्तों,
मनाओ जी गणेश भक्तों ॥
राजू वि हरिपुरिया बोले,
गावे सलीम ना कदे वि डोले,
आवो पुजले एक मन होके,
ऐ दी चरणी आन खलोके,
मनाओ जी गणेश भक्तों,
मनाओ जी गणेश भक्तों ॥
गौरा माता दी अख दा तारा,
शिव शंकर दा राजदुलारा,
मनाओ जी गणेश भक्तो,
मनाओ जी गणेश भक्तों ॥
चैत्र नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसमें से मां दुर्गा का चौथा रूप देवी कूष्मांडा का है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कूष्मांडा की मुस्कान से पृथ्वी का निर्माण हुआ था, इसलिए उन्हें सृष्टि का पालक भी कहा जाता है।
देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप मां कूष्मांडा का हैं, जिनकी चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन पूजा की जाती है, मां का यह स्वरूप शक्ति, ऊर्जा और आत्मज्ञान का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां कूष्मांडा के मंद मुस्कान से इस सृष्टि की रचना हुई थी।
लोक आस्था का महापर्व चैती छठ सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। यह 4 दिनों तक चलता है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलता है।
छठ सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि महापर्व है, जो चार दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होता है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में।