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मां पार्वती और भगवान शिव के छोटे पुत्र भगवान गणेश ने संसार को माता-पिता का महत्व ऐसे समझाया कि वो देवताओं में प्रथम वंदनीय हो गए। माता-पिता ने स्वयं उन्हें देवताओं में प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद दिया। गणेश जी की बाल लीलाओं और कथाओं का वर्णन मुद्गल पुराण, गणेश पुराण और शिव पुराण में मिलता है।
भक्त वत्सल की गणेश चतुर्थी स्पेशल सीरीज ‘गणेश महिमा’ में आज हम आपको गणेश जी के पाताल लोक का राजा बनने और उनके एकदंत कहलाने से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं बताएंगे…
आपने भी सुना होगा कि भगवान गणेश पाताल लोक के राजा भी हैं। उनके पाताल लोक के अधिपति बनने की एक कथा है। एक बार गणपति ऋषि-मुनियों के पुत्रों के साथ पराशर ऋषि के आश्रम में खेल रहे थे। उसी समय वहां कुछ नाग कन्याएं आईं और गणेश जी से पाताल लोक चलने को आग्रह करने लगीं। भगवान गणेश ने उनका निवेदन स्वीकार किया और उनके साथ नाग लोक चले गए। जहां नागकन्याओं ने उनका बहुत आवभगत और मान-सम्मान किया।
तभी वहां नागराज वासुकी आ गए और भगवान गणेश की शारीरिक संरचना को देखकर उनका परिहास यानी मजाक उड़ाने लगे। इस अपमानजनक व्यवहार से भगवान गणेश को क्रोध आ गया और उन्होंने वासुकी के फन अपने पैरों तले दबा दिया और उनका मुकुट स्वयं धारण कर लिया।
वासुकी का गला सूखने लगा। उनकी यह हालत जब उनके बड़े भाई शेषनाग को पता चली तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने बड़े गुस्से से गणेश जी को सबक सिखाने का निश्चय किया लेकिन जैसे ही वो भगवान गणेश के सामने पहुंचे तो शेषनाग ने उन्हें पहचान लिया। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने हाथ जोड़कर गणेश जी से क्षमा मांगी। उन्होंने अपने भाई की गलती पर भी माफी मांगते हुए गणेश जी को नाग लोक यानी पाताल लोक का राजा बना दिया।
भगवान गणेश को हम एकदंत के नाम से भी पूजते हैं। उनके स्वरूप में हमने देखा है कि भगवान का एक दांत टूटा हुआ है। भगवान के एकदंत हो जाने के पीछे पुराणों में एक कथा है। यह बात उस काल की है जब भगवान विष्णु के अवतार और भगवान शिव के परम भक्त भगवान परशुराम लगातार अपने फरसे से क्षत्रियों का संहार कर रहे थे। उन्होंने 17 बार क्षत्रियों को धरती से खत्म कर दिया था। एक बार वे शिव और पार्वती के दर्शन की इच्छा से लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचे। उस समय भगवान शिव समाधि में बैठे थे और भगवान गणेश स्वयं पहरेदार बने बैठे थे।
अपने कर्तव्य का पालन करते हुए भगवान गणेश ने परशुराम जी को भगवान शिव की समाधि अवस्था से अवगत कराया और दर्शन करने से रोक लिया। इस पर अपने स्वभाव के अनुरूप परशुराम को क्रोध आ गया और उन्होंने भगवान गणेश को चुनौती दी।
इस चुनौती को भगवान गणेश ने स्वीकार किया लेकिन ब्राह्मण प्रहार करना गणेश जी ने उचित नहीं समझा। उन्होंने परशुराम को अपनी सूंड में जकड़कर चारों दिशाओं में घुमाया और छोड़ दिया। इससे परशुराम जी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने इस अपमान का बदला लेने के लिए अपने फरसे से भगवान गणेश पर वार किया।
यह शिव का दिया हुआ फरसा था। इसलिए अपने पिता भगवान शिव के सम्मान में गणेश जी ने फरसे का जवाब किसी भी अस्त्र से देना उचित नहीं समझा। गणेश जी ने यह वार अपने एक दांत पर झेल लिया। फरसा लगने से भगवान गणेश का दांत टूट गया। तभी भगवान शिव का ध्यान भंग हुआ और उन्होंने इस भीषण युद्ध को शांत करवाया। तब से भगवान गणेश एक दांत के कारण एकदंत कहलाए।
गणेश चतुर्थी: श्री गणेश की पूजन
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