प्रजापत्य विवाह प्राचीन भारतीय विवाहों के 8 प्रकारों में से ही एक है। इसका उल्लेख भविष्य पुराण और अन्य वैदिक ग्रंथों में भी दर्ज है। यह विवाह ब्रह्म विवाह के समान ही है। लेकिन, इसमें विशेष रूप से वर-वधु को गृहस्थ धर्म का पालन करने का उपदेश दिया जाता है। यह विवाह धार्मिक और सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देता है और इसका उद्देश्य वैवाहिक जीवन को सुखी और समृद्ध बनाना है। महर्षि याज्ञवल्क्य के अनुसार, इस विवाह से उत्पन्न संतान अपने वंश की बारह पीढ़ियों को पवित्र करती है। तो आइए इस लेख में प्रजापत्य विवाह के बारे में विस्तार से जानते हैं।
प्रजापत्य विवाह वह विवाह है जिसमें कन्या का पिता वर और कन्या को विवाह के दौरान यह कहता है कि "तुम दोनों मिलकर गृहस्थ धर्म का पालन करो और अपने जीवन को सुखी एवं समृद्ध बनाओ।" यह वचन देने के बाद विधिवत पूजा करके कन्यादान किया जाता है। इसमें कन्या को आभूषण या विशेष उपहार देने की परंपरा नहीं होती। इसे साधारण व्यक्ति द्वारा वैदिक विधि से संपन्न किया जाने वाला विवाह माना गया है।
वर्तमान समय में प्रजापत्य विवाह की परंपरा प्रतीकात्मक रूप से ही देखने को मिलती है। आधुनिक विवाह समारोह में भले ही वैदिक मंत्रों और परंपराओं का पालन किया जाता हो लेकिन इसमें प्रजापत्य विवाह के मूल भावनात्मक और सामाजिक पहलुओं को उतनी प्रमुखता नहीं दी जाती है। यही कारण है कि आजकल के विवाह में कलह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आज के दौर में यह विवाह हमें यह सिखाता है कि वैवाहिक जीवन केवल व्यक्तिगत सुख तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह महिलाओं द्वारा समाज और अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने का भी एक माध्यम है।
बारिशों की छम छम में तेरे दर पे आए हैं।
बारिशों की छम छम में तेरे दर पे आए हैं।
बारिशों की छम छम में तेरे दर पे आए हैं।
ऊँचा है भवन, ऊँचा मंदिर
ऊँची है शान, मैया तेरी
चरणों में झुकें बादल भी तेरे
पर्वत पे लगे शैया तेरी
जयकारा शेरावाली दा
बोल सांचे दरबार की जय।
दुर्गा है मेरी मां, अम्बे है मेरी मां।
(दुर्गा है मेरी मां, अम्बे है मेरी मां।)
धूप समय की लाख सताए मुझ में हिम्मत बाकी है।
धूप समय की लाख सताए मुझ में हिम्मत बाकी है।
मेरा सर ढकने को माई तेरी चूनर काफ़ी है।