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प्रजापत्य विवाह क्या है?

प्रजापत्य विवाह क्या है?

वैदिक विधि से किया जाता है प्रजापत्य विवाह, बारह पीढ़ियों का करता है पवित्र 


प्रजापत्य विवाह प्राचीन भारतीय विवाहों के 8 प्रकारों में से ही एक है। इसका उल्लेख भविष्य पुराण और अन्य वैदिक ग्रंथों में भी दर्ज है। यह विवाह ब्रह्म विवाह के समान ही है। लेकिन, इसमें विशेष रूप से वर-वधु को गृहस्थ धर्म का पालन करने का उपदेश दिया जाता है। यह विवाह धार्मिक और सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देता है और इसका उद्देश्य वैवाहिक जीवन को सुखी और समृद्ध बनाना है। महर्षि याज्ञवल्क्य के अनुसार, इस विवाह से उत्पन्न संतान अपने वंश की बारह पीढ़ियों को पवित्र करती है। तो आइए इस लेख में प्रजापत्य विवाह के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


प्रजापत्य विवाह का अर्थ? 


प्रजापत्य विवाह वह विवाह है जिसमें कन्या का पिता वर और कन्या को विवाह के दौरान यह कहता है कि "तुम दोनों मिलकर गृहस्थ धर्म का पालन करो और अपने जीवन को सुखी एवं समृद्ध बनाओ।" यह वचन देने के बाद विधिवत पूजा करके कन्यादान किया जाता है। इसमें कन्या को आभूषण या विशेष उपहार देने की परंपरा नहीं होती। इसे साधारण व्यक्ति द्वारा वैदिक विधि से संपन्न किया जाने वाला विवाह माना गया है।


प्रजापत्य विवाह की प्रक्रिया


  1. विवाह का संकल्प: विवाह के आरंभ में कन्या के पिता वर और वधु को गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों और धर्म का पालन करने का उपदेश देते हैं।
  2. कन्यादान: उपदेश के बाद पिता विधिवत पूजा-अर्चना कर कन्या का दान वर को करते हैं। यह दान वैदिक रीति से संपन्न होता है।
  3. मंडप का महत्व: विवाह मंडप को ‘ईश्वर का घर’ माना जाता है। इसे पारंपरिक बांस और सरपत की मदद से बनाया जाता है। मंडप के बीच में खेत जोतने वाले हल की लकड़ी लगाई जाती है जो कृषि और जीवन के मूल धर्म का प्रतीक है।
  4. अग्नि प्रज्ज्वलन: मंडप के नीचे अग्नि प्रज्वलित की जाती है और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विवाह पूर्ण की जाती है।


प्रजापत्य विवाह का महत्व


  1. गृहस्थ धर्म का पालन: इस विवाह में वर-वधु को गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों और धार्मिक नियमों का पालन करने की प्रेरणा दी जाती है। यह परिवार और समाज में संतुलन बनाए रखने का माध्यम है।
  2. पवित्र संतति: महर्षि याज्ञवल्क्य के अनुसार, प्रजापत्य विवाह से उत्पन्न संतान अपने वंश की बारह पीढ़ियों को पवित्र करती है और वंश का यश बढ़ाती है।
  3. सामाजिक समानता: इस विवाह में किसी प्रकार के दहेज या उपहार का आदान-प्रदान नहीं होता, जिससे यह सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है।
  4. परंपरा और संस्कृति: मंडप और वैदिक रीति-रिवाजों के माध्यम से यह विवाह भारतीय संस्कृति और आर्य परंपराओं को संरक्षित करता है।


वर्तमान संदर्भ में प्रजापत्य विवाह


वर्तमान समय में प्रजापत्य विवाह की परंपरा प्रतीकात्मक रूप से ही देखने को मिलती है। आधुनिक विवाह समारोह में भले ही वैदिक मंत्रों और परंपराओं का पालन किया जाता हो लेकिन इसमें प्रजापत्य विवाह के मूल भावनात्मक और सामाजिक पहलुओं को उतनी प्रमुखता नहीं दी जाती है। यही कारण है कि आजकल के विवाह में कलह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आज के दौर में यह विवाह हमें यह सिखाता है कि वैवाहिक जीवन केवल व्यक्तिगत सुख तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह महिलाओं द्वारा समाज और अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने का भी एक माध्यम है।


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