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रावण से जुड़ी है अखुरथ संकष्टी कथा

रावण से जुड़ी है अखुरथ संकष्टी कथा

Akhuratha Sankashti Chaturthi Vrat Katha: रावण से जुड़ी है अखुरथ संकष्टी व्रत कथा, यहां पढ़ें



पौष माह में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि अखुरथ संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन किया जाता है जो कि हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय देवता हैं। मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने के बाद यदि कोई कार्य किया जाए तो वो जरूर सफल होता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस व्रत को रखने से जातक के सभी कष्ट दूर होते हैं। इसकी कथा रावण से जुड़ी है, तो आइए इस आलेख में इसकी पौराणिक कथा को विस्तार से जानते हैं। 

क्या है अखुरथ चतुर्थी व्रत कथा? 


अखुरथ चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार जब रावण ने स्वर्ग के सभी देवताओं को पराजित कर दिया था। पर जब उसे बालि की आपार शक्ति के बारे में पता चला तो उसने संध्या करते हुए बालि को पीछे से जाकर पकड़ लिया। चूंकि, वानरराज बालि रावण से कहीं अधिक शक्तिशाली था। इसलिए, उन्होंने रावण को अपनी बगल में दबा लिया और उसे किष्किंधा ले आए और अपने पुत्र अंगद को खिलोने की तरह खेलने के लिए दे दिया। अंगद ने भी रावण को खिलौना ही समझा और उसे रस्सी से बांधकर इधर-उधर घुमाने लगा। जिसकी वजह से रावण को काफी पीड़ा हो रही थी।

तब एक दिन रावण ने बहुत दुखी मन से अपने पिता ऋषि पुलस्त्य जी का सुमिरन किया। रावण की ऐसी दशा देखकर ऋषि पुलस्त्य को बहुत दुख हुआ और उन्होंने पता लगाया कि आखिर रावण की ऐसी दशा क्यों हुई है। उन्होंने मन ही मन यह सोचा कि घमंड होने पर देव, मनुष्य और असुर सभी की यही गति होती है। फिर भी ​पुत्र मोह में आकर उन्होंने रावण से पूछा कि तुमने मुझे क्यों याद किया? रावण ने तब कहा कि “मैं बहुत दुखी हूं, यहां के नगरवासी मुझे धिक्कारते हैं, आप मेरी रक्षा कीजिए और इस दुख से बाहर निकालिए।”

रावण की बात सुनकर पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि तुम परेशान मत हो, जल्द ही तुम्हें इस बंधन से मुक्ति मिल जाएगी। उन्होंने रावण को भगवान गणेश जी का व्रत करने की सलाह दी और बताया कि पूर्वकाल में वृत्रासुर की हत्या से मुक्ति पाने के लिए देवराज इन्द्र ने भी यह व्रत किया था। उन्होंने आगे कहा कि यह व्रत बहुत ही फलदायी है और इसे करने से सभी संकट दूर होते हैं। महर्षि पुलस्त्य के कहने अनुसार रावण ने अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूरे विधि-विधान से पूर्ण किया। इस व्रत के प्रभाव से बालि ने रावण को अपना मित्र बनाकर उसे अपने बंधन से मुक्त कर दिया। इस तरह जो पूरी श्रृद्धा से अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत करता है, वह बड़ी से बड़ी मुश्किल से भी निकल जाता है।

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श्री ब्रह्मा चालीसा (Shri Brahma Chalisa)

जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू, चतुरानन सुखमूल।
करहु कृपा निज दास पै, रहहु सदा अनुकूल।

करवा चौथ व्रत कथा (Karva Chauth Vrat Katha)

एक साहूकार था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई व बहन एक साथ बैठकर भोजन करते थे। एक दिन कार्तिक की चौथ का व्रत आया तो भाई बोला कि बहन आओ भोजन करें।

Tune Mujhe Bulaya Sherawaliye (तुने मुझे बुलाया शेरा वालिये)

साँची ज्योतो वाली माता,
तेरी जय जय कार ।

गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa)

गुड़ी पड़वा हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। ऐसा माना जाता है कि गुड़ी को घर पर फहराने से घर से नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं और जीवन में सौभाग्य और समृद्धि आती है।

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