धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसी लिए विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता गणेश जी को समर्पित गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि का बनी रहती है। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव माना जाता है और इसलिए 13 संकष्टी चतुर्थी व्रतों में गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का अपना महत्व है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह कार्तिक माह में आती हैं। यह चतुर्थी पूर्णिमा कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष महीने में और अमांत कैलेंडर के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष के समय आती है।
तो आइए जानते हैं इस साल नवंबर के महीने में आने वाली गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में सबकुछ।
हिंदू पंचांग के अनुसार संकष्टी चतुर्थी तिथि शुरुआत 18 नवम्बर 2024 को शाम के 06:55 बजे से होगी। वहीं इस चतुर्थी तिथि का समापन अगले दिन 19 नवंबर 2024 को शाम के 05:28 बजे होगा। संकष्टी व्रत का पारण चंद्रोदय के बाद करना चाहिए इसलिए ध्यान रखें इस दिन चंद्रमा का उदय 7 बजकर 34 मिनट पर होगा।
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में क्षिप्रा नदी के तट पर भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजमान हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों में यह तीसरे स्थान पर आता है। उज्जैन में स्थित यह ज्योतिर्लिंग देश का एकमात्र शिवलिंग है जो दक्षिणमुखी है। मंदिर से कई प्राचीन परंपराएं जुड़ी हुई हैं।
महाशिवरात्रि, हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर, प्रत्येक हिंदू घर में उत्साह और श्रद्धा का वातावरण होता है। शिव भक्त इस दिन विशेष रूप से व्रत रखते हैं और चारों पहर में भगवान शिव की आराधना करते हैं।
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच यह विवाद छिड़ गया कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। इस विवाद को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक अनंत प्रकाश स्तंभ ज्योति का रूप धारण किया।
महाशिवरात्रि का व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।