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चंद्र दर्शन का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

चंद्र दर्शन का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

जानिए क्यों धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है चंद्र दर्शन, मानसिक तनाव से मिलती है मुक्ति 


हर महीने अमावस्या के बाद जब पहली बार रात को आसमान में चंद्रमा दिखाई देता है, तो उस पल को चंद्र दर्शन कहा जाता है। हिंदू धर्म में यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसे न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक और ज्योतिषीय अर्थ भी शामिल हैं।


चंद्र दर्शन से बेहतर होती है नींद और मानसिक स्थिति

वैज्ञानिक दृष्टि से चंद्रमा की रोशनी इंसानों के मस्तिष्क पर शांत करने वाला प्रभाव डालती है। इसरो, नासा और अन्य संस्थानों द्वारा किए गए शोध बताते हैं कि चंद्रमा की रोशनी मेलाटोनिन हार्मोन के स्तर को प्रभावित करती है, जो नींद और मानसिक स्थिति से जुड़ा होता है। इसलिए अमावस्या की पूर्ण अंधकारमय रात के बाद जब चांद की हल्की रोशनी दिखाई देती है, तो वह आंखों और मन दोनों को शीतलता प्रदान करती है। यही कारण है कि चंद्र दर्शन को मानसिक तनाव कम करने वाला माना जाता है।


चंद्र दर्शन से होती है बुद्धि और विवेक की वृद्धि

जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति व्यक्ति की मानसिक स्थिति, भावनात्मक संतुलन और निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाती है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन और बुद्धि का ग्रह माना गया है। अमावस्या को चंद्रमा लुप्त हो जाता है, और अगले दिन जब वह धीरे-धीरे दिखना शुरू होता है, तो यह संकेत देता है कि नकारात्मकता का अंत हो चुका है और अब सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने वाला है। यही कारण है कि चंद्र दर्शन को मानसिक स्थिरता और विवेक की दृष्टि से शुभ माना जाता है।


सदियों से है चंद्र दर्शन की परंपरा 

चंद्र दर्शन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह परंपरा हमेशा से चली आ रही है, और लगभग हर स्थान पर इसे विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। यही कारण है कि अमावस्या के बाद आने वाली अगली रात को लोग उत्सुकता से आकाश की ओर देखते हैं और चंद्रमा को देखकर मानसिक शांति का अनुभव करते हैं। पुराणों में भी चंद्र दर्शन के महत्व का उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन से मनुष्य के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। 

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कैसे करें भगवान दत्तात्रेय की पूजा?

भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ही अंश माना जाता है। माता अनुसूया की कठिन साधना के फलस्वरूप ये तीनों देव ही भगवान दत्तात्रेय के रूप में अवतरित हुए थे।

भगवान दत्तात्रेय की पौराणिक कथा

मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवों के अंश माने जाने वाले भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। भगवान दत्तात्रेय को गुरु और भगवान दोनों की उपाधि दी गई है।

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